समावेशी शिक्षा का परिभाषा एवं अर्थ, (Inclusive Education)

समावेशी क्या है ?

समावेशी का अर्थ है, बिना किसी डर के प्रतिनिधिनित्व करना है । समावेशी को एक समानता के अधिकार के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें सभी को बोलने, सुनने तथा भाग लेने का अधिकार मिलता है । यह किसी के उस विकार या परेशानी को दूर करने का माध्यम है जो उसने खुद से नहीं किया है ।

समावेशी दो तरह के होते हैं, तर्कसंगत तथा तर्कहीन । तर्कसंगत समावेशिता में आप किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करते । तर्कहीन समावेशिता में बिना किसी कारण के उसके लिंग या शारीरिक अक्षमता के कारण भेदभाव करते हैं ।

समावेशी शिक्षा क्या है ?

समावेशी शिक्षा में ‘सामान्य बालक’ और ‘विशिष्ठ बालक’ एक ही विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं । इसमें विशिष्ठ बालकों के लिए उचित वातावरण बनाया जाता है जिससे सामान्य बच्चों और विशिष्ठ बच्चों को एक साथ शिक्षा ग्रहण करने का मौका मिलता है ।

समावेशी शिक्षा की परिभाषा –

  • ‘यरशेल’ के आनुसार“समावेशी शिक्षा के कुछ कारण योग्यता, लिंग, जाति, प्रजाति, भाषा, चिंता स्तर, सामाजिक आर्थिक स्तर, विकलांगता, लिंग व्यवहार या धर्म से संबंधित होते हैं ।”
  • ‘स्टीफन तथा ब्लेंकहर्ट’ के अनुसारशिक्षा की मुख्य धारा का अर्थ बाधित बच्चों की सामान्य कक्षाओं में शिक्षक व्यवस्था करना है । यह समान अवसर मनोवैज्ञानिक सोच पर आधारित है, जो व्यक्तिगत योजना के द्वारा उपयुक्त सामाजिक मानकीकरण और अधिगम को बढ़ावा देती है ।”
  • ‘शिक्षाशास्त्री’ के अनुसार “समावेशी शिक्षा में ‘सामान्य बालक’ और ‘विशिष्ठ बालक’ एक ही विद्यालय में बिना किसी भेदभाव के शिक्षा ग्रहण करते हैं ।”

समावेशी शिक्षा का सिद्धांत –

एक बच्चे को सीखने के लिए अच्छे वातावरण की आवश्यकता होती है, जहाँ उसकी सामाजिक और भावनात्मक जरूरतें पूरी होती है । स्कूल का परिवेश बच्चे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है । समावेशी शिक्षा सभी तक सामान रूप से पहुंचे सबकी सामान भागीदारी हो, शोषित वर्ग का अंत हो और एक समता मूलक समाज की स्थापना हो ।

  • पहुँच – हर बच्चे की जरुरत के प्रति संवेदनशील होना, बच्चे पर सामाजिक रूप से प्रासंगिक और न्यायोचित सीखाने की प्रक्रिया प्रदान करना । शिक्षक अपने कौशल रवैये और प्रोत्साहन द्वारा सुविधाहीन और अधिकारहीन समुदाय के बच्चों की संलिप्तता, प्रतियोगिता व उपलब्धि उल्लेखनीय ढंग से बढ़ा सकते हैं । विधालयों की व्यवस्था को अच्छा बनाना होगा । विधालय भवन में शौचालय, पीने का पानी, खेल का मैदान, शिक्षक तथा अन्य भौतिक संसाधन उपलब्ध कराने होंगे । शिक्षकों को अधिक से अधिक अभिभावकों के संपर्क में रहना होगा और बच्चों की कमियों को दूर करने का प्रयास करना होगा ।
  • समानता – समानता एक ऐसी अवस्था है, जिसमे सभी व्यक्ति समान परिस्थितियों में सामान व्यवहार का अधिकार रखते हैं । समानता बिना किसी भेदभाव के व्यक्ति को सभी संसाधनों पर सामान रूप से पहुँच प्राप्त करने का अधिकार है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में समानता के उद्देश्य को साकार बनाने के लिए सभी को शिक्षा का सामान अवसर उपलब्ध कराना और सभी को शिक्षा में सफलता प्राप्त करने का अवसर मिल सके ।
  • भागीदारी – शिक्षा का मुख्य लक्ष्य है कि छात्रों को सार्थक शिक्षा अनुकूल पर्यावरण में उपलब्ध कराई जाए, जिससे वे जीवन मार्ग में सफल हो सकें । हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और इसमें योग्यता, शारीरिक अक्षमता, भाषा, संस्कृति, उम्र, लिंग आदि अवरोध पैदा ना करे. हर बच्चा जो विधालय में प्रवेश लेता है उसकी विधालयी गतिविधियों में संपूर्ण भागीदारी हो । प्रत्येक बच्चे को महत्व देना अनिवार्य है, क्योंकि इससे बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है, अनुशासन और बच्चों के व्यवहार में सुधार होता है ।यदि बच्चे विधालयी जीवन तक नहीं पहुँच पाते हैं तो उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है । विधालय में बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है, इसलिए जब बच्चे विधालय में प्रवेश लेने के पश्चात उसे कक्षा की समस्त गतिविधियों में शामिल करना भी आवश्यक है ।
  • प्रासंगिकता – समावेशी शिक्षा प्रत्येक बच्चे के लिए उच्च और उचित उम्मीदों के साथ उसको व्यक्तिगत लक्ष्यों पर काम करने के लिए अभिप्रेरित करती है ।इसका उद्देश्य तो सभी वर्गों के बच्चों को एक ही छत के नीचे शिक्षा देना है । इसमें बच्चों को सामाजिक, जातिगत, आर्थिक वर्गीय, लैंगिक, शारीरिक और मानसिक दृष्टि से भिन्न-भिन्न देखे जाने के बजाए एक सामान रूप में देखा जाता है । बच्चों को सीखने के लिए उचित वातावरण व अवसर देने की आवश्यकता है ।
  • सशक्तिकरण – समावेशन का एक सिधान्त सभी वर्गों के बच्चों को सशक्त बनाना भी है । विधालय स्तर पर प्रत्येक बच्चे को सशक्त बनाने के लिए हम निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं
  • बच्चे को समझना आवश्यक है ।
  • प्रत्येक बच्चे का सम्मान करना आवश्यक है ।
  • बच्चे को शारीरिक व मानसिक दंड से दूर रखना आवश्यक है ।
  • एक शिक्षक को बच्चे के प्रति सकारात्मक सोच आवश्यक है ।
  • बच्चों को भी कभी शिक्षक की भूमिका निभाने का अवसर मिलना चाहिए ।
  • प्रत्येक बच्चे को उसके उत्तरदायित्व का एहसास करना जरुरी है ।

समावेशी शिक्षा का अर्थ –

समावेशी शिक्षा का अर्थ है ‘जिसमें सामान्य और विशिष्ठ शैक्षिक आवश्यकता वाले बच्चों को एक सामान्य विद्यालय की सामान्य कक्षा में एक साथ शिक्षा प्रदान की जाती है । अर्थात् विद्यालय बच्चों की विविध आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर अपने संसाधनों का विस्तार करता है ताकि बच्चे की अधिगम आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके ।

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता और महत्व – 

शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है, हर बच्चे को सामान शिक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता होती है ।

  • मानवाधिकार – सभी बच्चों को एक साथ सीखने की आवश्यकता है, कोई भी अधिगम क्षमता, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण बच्चों में भेदभाव नहीं कर सकता है ।
  • शिक्षा – समावेशित वातावरण में बच्चें शैक्षिक व सामाजिक रूप से बेहतर प्रदर्शन करते हैं, प्रतिबद्धता और समर्थन को देखते हुए समावेशी शिक्षा शैक्षिक संसाधनों का अधिक प्रभावी उपयोग है ।
  • सामाजिक – सभी बच्चे अपने आसपास के विभिन्न लोगों से सम्बन्ध बनाते हैं और यह उन्हें जीवन की मुख्यधारा के लिए तैयार करता है । समावेशन में डर कम करने और मित्रता विकसित करने की क्षमता होती है और दोस्तों के बीच आपसी सम्मान, समझ और करुणा बढ़ जाती है । समावेशी शिक्षा विभिन्न तरीकों से बच्चों के विकास में मदद करती है । विशिष्ठ रूप से बाधित बच्चे शारीरिक, संज्ञात्मक और सामाजिक विकास व कौशलों में बहुत अच्छी तरक्की करते हैं । जब हम बच्चों को स्कूलों में समावेशी शिक्षा से अलग करते हैं, तो समाज में भी उनको समानता नहीं मिलेगी । ऐसे बच्चों को बाद में समुदाय के किसी प्रयोजन में शामिल करना मुश्किल हो जाता है । इस प्रकार समावेशी शिक्षा एक समावेशी समाज की नींव डालती है ।

समावेशी शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक –

समावेशी शिक्षा एक वैश्विक प्रवृत्ति है, स्कूलों को सभी समुदाय के बच्चों की आवश्यकताओं के अनुसार, उनकी क्षमताओं की परवाह किये बिना शिक्षा प्रदान करनी चाहिए ।

  • शिक्षार्थियों में विविधता एक ही आयु के बच्चों के समूह में भी बहुत विविधता है । बच्चे अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि, प्रेरणा, सीखने की क्षमता व्यक्तिगत गुण, जो पढाई में सफलता, अभिवृत्तियाँ, रुचियाँ, और प्रतिबद्धताओं आदि में एक-दूसरे से भिन्न है ।
  • भौतिक सुविधाएँ – समावेशी शिक्षा प्रत्येक शिक्षक के लिए कक्षा का स्थान, जगह और व्यवस्था एक अनिवार्य कारक है । कई स्कूलों में अधिगम के लिए उपयुक्त मूल सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं है । शोर-शराबे से दूर जगह, कमरों में उचित हवा का आवागमन, कक्षा के अंदर और बाहर स्वतंत्र गति करने की जगह, खेलने के लिए मैदान, अन्य पाठ्येत्तर क्रियाओं का प्रावधान समावेशी शिक्षा का समर्थन करने के लिए अनिवार्य है ।
  • शिक्षकों की तैयारी – प्रत्येक शिक्षक में बच्चे की आवश्यकता को पहचानने का कौशल होना चाहिए । परंतु शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम इस मुद्दे पर कभी बात नहीं करते । कक्षा में दैनिक रूप से विविधता का ध्यान रखने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है । हमारे देश में इस आवश्यकता पर ध्यान नहीं दिया जाता है, इसीलिए यह समावेशी शिक्षा के लिए खतरा हो सकता है ।
  • संसाधनों की उपलब्धि – हमारे स्कूलों में अधिगम क्रिया का समर्थन करने हेतु संसाधनों की उपलब्धि के बारे में सोचा नहीं गया है । शिक्षक विभिन्न अधिगम सामग्रियों का प्रयोग नहीं कर पाते हैं ।
  • मूल्यांकन व्यवस्था – हमारी परीक्षा व्यवस्था में इतनी कठोरता है कि बच्चे का आकलन गलत हो जाता है । विविध शिक्षार्थियों के लिए विविध मूल्यांकन व्यवस्था की जरुरत है । यदि बच्चा लिख नहीं सकता, तो उसकी बाकी क्षमताएँ छिपी रह जाएंगी । यदि बच्चे को पढने, लिखने के अलावा कोई और मूल्यांकन के तरीके की जरुरत है तो वह हमारे पास है ही नहीं । इससे बच्चा परेशान हो जाता है ।

समावेशी शिक्षा के लाभ –

  • समावेशी शिक्षा गरीबी और अपवर्जन के चक्र को तोड़ने में मदद कर सकती है ।
  • यह भेदभाव को मिटती है, जो हर समाज में बड़े पैमाने पर फैला है ।
  • यह बच्चों को उनके परिवारों और समुदायों के साथ रहने के लिए प्रोत्साहित करती है ।
  • इससे बच्चों में घृणा की भावना समाप्त हो जाती है।
  • समावेशी शिक्षा के कारण विशिष्ठ रूप से बाधित बच्चों में और सामान्य बच्चों में आपसी मित्रता अच्छी रहेगी ।
  • यह स्कूल का वातावरण सुधारती है, जिसका लाभ सभी बच्चों को मिलता है ।

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