मनोविज्ञान की अर्थ , परिभाषा, विशेषता और इतिहास | Psychology in hindi

मनोविज्ञान क्या है ?

मनोविज्ञान मनुष्यों , पशुओं आदि के मानसिक प्रक्रियाओं , अनुभवों एवं व्यवहारों का वैज्ञानिक अध्ययन है ।

मनोविज्ञान (Psychology) शब्द अंग्रेजी भाषा के Psyche जिसका अर्थ होता है आत्मा तथा Logos जिसका अर्थ होता है अध्ययन से मिल कर बना है . यानि आत्मा के अध्ययन को ही मनोविज्ञान कहा जाता है । मनोविज्ञान अनुभव तथा प्राणी के भीतर के मानसिक एवं शारीरिक प्रक्रियाओं जैसे – चिंतन भाव आदि तथा वातावरण में होने वाले घटनाओं के साथ उनका सम्बन्ध जोड़कर अध्ययन करता है । इसलिए मनोविज्ञान को व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है । मानसिक प्रक्रियाओं के अंतर्गत सीखना , चिंतन , अवधान (Attention) स्मृति आदि आते है ।

मनोविज्ञान क्या है | Psychology in hindi

मनोविज्ञान की परिभाषाएँ 

  • वाटसन के अनुसार – वाटसन के अनुसार मनोविज्ञान व्यवहारकानिश्चितया शुद्ध विज्ञान है।
  • वुडवर्थ के अनुसार – वुडवर्थ के अनुसार  मनोविज्ञान वातावरण के सम्पर्क में होने वाले मानव व्यवहारों का विज्ञान है।
  • मैक्डूगल के अनुसार – मैक्डूगल के अनुसार  मनोविज्ञान आचरण एवं व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है।
  • क्रो एण्ड क्रो के अनुसार – क्रो एण्ड क्रो के अनुसार  मनोविज्ञान मानव–व्यवहार और मानव सम्बन्धों का अध्ययन है।
  • बोरिंग के अनुसार – बोरिंग के अनुसार  मनोविज्ञान मानव प्रकृति का अध्ययन है।
  • स्किनर के अनुसार – स्किनर के अनुसार मनोविज्ञान  व्यवहार और अनुभव का विज्ञान है।
  • कॉलसनिक के अनुसार – कॉलसनिक के अनुसार  मनोविज्ञान के सिद्धान्तों व परिणामों का शिक्षा के क्षेत्र में अनुप्रयोग ही शिक्षा मनोविज्ञान कहलाता है।
  • सारे व टेलफोर्ड के अनुसार – सारे व टेलफोर्ड के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य सम्बन्ध सीखने से है। यह मनोविज्ञान का वह अंग है जो शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की वैज्ञानिक खोज से विशेष रूप से सम्बन्धित है।
  • किल्फोर्ड के अनुसार – किल्फोर्ड के अनुसार बालक के विकास का अध्ययन हमें यह जानने योग्य बनाता है कि क्या पढ़ायें और कैसे पढाये।
  • ट्रो के अनुसार – ट्रो के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों के मनोविज्ञान पक्षों का अध्ययन है।
  • जॉन डीवी के अनुसार – जॉन डीवी के अनुसार शिक्षा मनुष्य की क्षमताओं का विकास करता है जिनकी सहायता से वह अपने वातावरण पर नियंत्रण करता हुआ अपनी संभावित उन्नति को प्राप्त करता है।
  • जॉन एफ.ट्रेवर्स के अनुसार – जॉन एफ.ट्रेवर्स के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान वह विज्ञान है, जिसमे छात्र शिक्षण तथा अध्यापन का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।

मनोविज्ञान का इतिहास

मनोविज्ञान दर्शनशास्त्र का एक शाखा था जब विलियम वुंट ने 1879 में मनोविज्ञान का पहला प्रयोगशाला खोला था ।इसके बाद मनोविज्ञान , दर्शनशास्त्र से अलग हो कर उसे एक अलग दर्जा मिला ।

  • डेकार्ट – (1596 – 1650) – मनुष्य तथा पशुओं के बीच अंतर बताया कि मनुष्य में आत्मा होती है जबकि पशु एक मशीन कि भांति काम करते है । आत्मा के कारण मनुष्य में इच्छा शक्ति होती है । डेकार्ट के अनुसार मनुष्य में ऐसे विचार होते हैं जिसे जन्मजात कहा जा सकता है ।
  • लायबनीत्स (1646 – 1716) – इनके अनुसार “संपूर्ण पदार्थ मोनैड इकाई से मिलकर बना है’’ उन्होंने चेतनावस्था को विभिन्न मात्राओं में विभाजित करके लगभग 200 वर्ष बाद आनेवाले फ्रायड के विचारों के लिए एक बुनियाद तैयार किया ।
  • बर्कले (1685 – 1753) – इन्होंने कहा कि वास्तविकता कि अनुभूति पदार्थ के रूप में नहीं वरन प्रत्यय के रूप में होती है। उन्होंने दुरी की संवेदना के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अभिबिंदुता , धुंधलेपन तथा स्वतः समायोजन की सहायता से हमें दुरी की संवेदना होती है।
  • हार्टले (1705 – 1757) – इनका नाम दैहिक मनोविज्ञान दार्शनिक में रखा जा सकता है। इनके अनुसार स्नायु-तंतुओं में हुए कंपन के आधार पर संवेदना होती है। इस विचार की पृष्ठभूमि में न्यूटन के द्वारा प्रतिपादित तथ्य थे , जिनमें कहा गया था कि उत्तेजक के हटा लेने के बाद भी संवेदना होती रहती है । हार्टले के साहचर्य विषयक नियम बताते हुए सन्निध्य के सिधांत पर अधिक जोर दिया है।
  • ह्यूम (1711-1776) – मुख्य रूप से ‘विचार’ तथा ‘अनुमान’ में भेद करते हुए कहा कि विचारों कि तुलना में अनुमान अधिक उत्तेजनापूर्ण तथा प्रभावशाली होते हैं। ह्यूम ने कार्य-कारण-सिधांत के विषय में अपने विचार स्पष्ट करते हुए आधुनिक मनोविज्ञान को विज्ञानिक पद्धति के निकट पहुँचाने में उल्लेखनीय सहायता प्रदान की।
  • रीड (1710-1796) – स्काटलैंड ने वस्तुओं के प्रत्यक्षीकरण का वर्णन करते हुए बताया कि प्रत्यछीकरण तथा संवेदना में भेद करना आवश्यक है । किसी वस्तु विशेष के गुणों कि संवेदना होती है जबकि उस संपूर्ण वस्तु का प्रत्यक्षीकरण होता है। संवेदना केवल किसी वस्तु के गुणों तक ही सीमित रहता है , किन्तु प्रत्यक्षीकरण द्वारा हमें उस पूरी वस्तु का ज्ञान होता है।
  • लॉत्से (1817–1881) – लॉत्से ने इसी दिशा में आगे की ओर प्रगति की।
  • मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है। इसमें मानव एवं पशु दोनों के व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है।

मनोविज्ञान की विशेषताएं

  • मनोविज्ञान प्राणियों के व्यवहार पर वातावरण के भौतिक तथा अभौतिक प्रभाव का अध्ययन करता है तथा अंतिम रूप प्राणियों की ज्ञानात्मक तथा संवेगात्मक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करता है।
  • मनोविज्ञान में ज्ञानात्मक क्रियाओं जैसे – स्मृति , विस्मृति , कल्पना , संवेग आदि संवेगनात्मक क्रियाओं जैसे – रोना , हँसना , गुस्सा होना आदि तथा क्रियाओं जैसे – बोलना , चलना-फिरना आदि का अध्ययन करता है।
  • मनोविज्ञान , भौतिक तथा सामाजिक दोनो तरह के वातावरण का अध्ययन करता है।
  • मनोविज्ञान एक विधायक विज्ञान है।

मनोविज्ञान की महत्व

आधुनिक युग में शिक्षा का आधार मनोविज्ञान है। शिक्षा में मनोविज्ञान का महत्व इस प्रकार है –

  • बाल केन्द्रित शिक्षा – प्राचीन समय में शिक्षा का केंद्र बालक कि रुचियों , अभिवृत्तियों तथा अभिरुचियों की परवाह किये बिना ही शिक्षण कार्य चलता था। बालक की योग्यता उनकी क्षमता रूचि , अभिरुचि के अनुसार ही पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का निर्माण किया जाता है।
  • शिक्षण पद्धति में परिवर्तन – प्राचीन समय में शिक्षा का आधार बिंदु अध्यापक ही होते थे और वह बालक को रटने पर बल देते थे परंतु मनोवैज्ञानिकों ने रटने पर बल ना देकर बालक के आतंरिक शक्तियों का विकास करने पर बल दिया है। आज के युग में मनोवैज्ञानिकों के पद्धतियों के द्वारा बालक के आतंरिक शक्तियों का विकास तो होता ही है साथ ही उन्हें अभिव्यक्ति करने का माध्यम भी मिल जाता है।
  • पाठ्यक्रम – मनोवैज्ञानिक पहलुओं के विकास से पहले पाठ्यक्रम में उन बातों पर बल दिया जाता था कि पाठ्यक्रम कठिन हो तथा उनमे अभ्यास अधिक हो। यह करण है कि गणित में कठिन प्रश्न रखकर अभ्यास पर बल दिया जाता रहा है। अनेक मनोवैज्ञानिक परीक्षणों ने छात्रों की क्षमताओं तथा व्यक्तिगत भेदों के द्वारा छात्रों के ज्ञान विकास तथा परिपक्वता को समझने में भी योगदान दिया है, इसलिए आज पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय बालक की रूचि अभिवृत्ति विकास आदि को ध्यान में रखा जाता है।
  • अनुशासन – डंडे से मारपीट कर या भय के बल पर छात्रों का सर्वांगीण विकास नहीं किया जा सकता है। अतः प्रजातान्त्रिक आधार पर स्व-अनुशासन बनाये रखने पर बल दिया जाता है ।
  • सीखने की प्रक्रिया का ज्ञान – शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षकों को अधिगम के नियमों से अवगत कराता है जिससे शिक्षक अधिक प्रखर हो जाता है और उसका आत्मविश्वास बढ़ता है।
  • वातावरण – सीखने के लिए स्वच्छ वातावरण होना आवश्यक होता है इससे उनमें सीखने की रूचि उत्पन्न करता है। इससे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास बना रहता है साथ ही बालक तनाव और भय से दूर रहते हैं।
  • पाठ्य सहगामी क्रियाएँ – पहले समझा जाता था कि पढाई के अतिरिक्त की क्रियाओं से बालक अपना समय नष्ट करते हैं पर यह विचार अब बदल गया है। निबंध लेखन प्रतियोगिता , वाद-विवाद प्रतियोगिता , भ्रमण खेलकूद , संगीत , नाटक आदि इस प्रकार के क्रियाओं को पाठ्यक्रम में स्थान देने के कारण बालकों के सर्वांगीण विकास में बहुत सहयोग मिला है।
  • व्यक्तिगत भिन्नता – बालकों में व्यक्तिगत विभिन्नताएं पाई जाती है। सभी बालक की अपनी सोचने और समझने की क्षमता होती है। सभी बालकों कि सोचने समझने की  क्षमता सामान नहीं होता है , सभी बालकों का क्षमता अलग-अलग होता है। मनोविज्ञान का आधार व्यक्ति है , मनोविज्ञान के अनुसार बालकों कि रूचि , क्षमता भिन्न होती है।
  • शिक्षा समस्याओं पर मत निर्धारण – आधुनिक युग की शिक्षा हमें समाज में हो रहे बुराइयों एवं शिक्षा की समस्याओं पर मत निर्धारण करने का मौका देती है। ताकि उनमे सुधार किया जा सके और समाज या देश को उन्नति की ओर ले जा सके। इन समस्याओं का आधार बिंदु विधालय ही होता है। क्योंकि समाज के हर जाति और धर्म के बच्चे विधालय में आते है , उनके बुराइयों को बदलना है तो हमें विधालय से ही शुरुआत करनी होगी जैसे बालश्रम , छुआछूत, पिछड़ापन , धर्म विविधता आदि। इसलिए विधालय हमें एक सूत्र में बाँधने का प्रयास करता है।
  • मापन एवं मूल्यांकन – मापन एवं मूल्यांकन की विधियों के माध्यम से यह प्रयास किया जाता है कि बालक की योग्यताओं का सही मापन हो एवं उनके द्वारा की गई प्रगति का मूल्यांकन भी सही ज्ञात हो सके।
  • अनुसंधान – अनुसंधान अध्यापक को नवीनतम शिक्षण विधियों का परिचय कराते है। इन विधियों के माध्यम से वह बालक का सर्वांगीन विकास करते हैं। इससे शिक्षा मनोविज्ञान का काफी महत्वपूर्ण योगदान है।
  • संवेगात्मक क्रियाएँ – शिक्षा मनोविज्ञान में यह देखा जाता है कि बालकों में थकान क्यों होती है , उनकी शारीरिक और मानसिक थकान किस प्रकार दूर की जा सकती है। क्रोध , भय और हर्ष का अध्ययन कर के यह प्रयास किया जाता है कि बालक संतुलित ढंग से विकसित हो और अच्छा व्यवहार करे।

आधुनिक मनोविज्ञान –

मनोविज्ञान की एतिहासिक पृष्ठभूमि में इसके दो सुनिश्चित रूप होते है। वैज्ञानिक अनुसंधानों , अविष्कारों द्वारा प्रभावित वैज्ञानिक मनोविज्ञान तथा दूसरा दर्शनशास्त्र द्वारा प्रभावित दर्शन मनोविज्ञान।

बाल मनोविज्ञान

बाल मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें बच्चों के मन का और व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। इसका उद्देश्य बच्चों का मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास करना है। बालमनोविज्ञान में गर्भावस्था, शैशवावस्था, बाल्यावस्था और किशोरावस्था का अध्ययन किया जाता है, जिससे बच्चों का मानसिक विकास उचित रूप से किया जा सके या हो सके।

बाल मनोविज्ञान की परिभाषा

‘फ्रायड’ के अनुसार – “व्यस्क होने पर व्यक्ति कोई नया व्यवहार नहीं करता बल्कि उनका प्रत्येक व्यवहार बचपन के किसी व्यवहार का एक रूप होता है।”

‘क्रो एंड क्रो’ के अनुसार – “बालमनोविज्ञान वह विज्ञान है जो बालकों की विकास का अध्ययन गर्भकाल से किशोरावस्था तक करता है।”

‘जेम्स ड्रेवर’ के अनुसार – “बाल मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें जन्म से परिपक्वावस्था तक विकसित हो रहे मानव का अध्ययन किया जाता है।”

‘आइजनेक ‘ के अनुसार – “बालमनोविज्ञान का सम्बन्ध बालक में मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के विकास से है। गर्भकालीन अवस्था, जन्म, शैश्ववास्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था और  परिपक्वावस्था तक के बालक की मनोवैज्ञानिक विकास प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।”

बाल मनोविज्ञान का सिद्धान्त

मनोविश्लेषणवादी सिद्धान्त – ‘फ्रायड’ ने सर्वप्रथम मनोवैज्ञानिक सिधान्त प्रतिपादित किया। इसमें इन्होंने बाल्यावस्था के अनुभवों के आधार पर विकास के विभिन्न आयामों का वर्णन किया। उनके निष्कर्षों का आधार बाल्यावस्था के प्रथम चार-पाँच वर्षों से संबंधित है। ‘फ्रायड’ के अनुसार “बाल्यावस्था के ये नाटकीय अनुभव वाले क्षण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जो कि एक व्यस्क व्यक्ति का आधार है।”

व्यवहारवादी सिद्धान्त – इस सिद्धांत के प्रतिपादक अमेरिका के व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक है, इसमें ‘जॉन डॉलर’ एवं ‘पी. जे. नीर’ प्रमुख है. इस सिद्धान्त के समर्थक फ्रायड के गत्यात्मकता संबंधी विचारों से अधिक सहमत है। ‘चाइल्ड तथा सीयर्स’ एवं उसके साथियों द्वारा व्यवहारवादी अधिगम विश्लेषण में यह कहा गया है कि – “बाल्यावस्था के विभिन्न व्यवहारों में मनोवैज्ञानिक आधार अन्तर्निहित होते हैं, परंतु निःसंदेह इसे विश्लेषण के द्वारा निष्कर्ष रूप में प्रतिपादित कर पाना आसान नहीं है।”

महत्वपूर्ण आयु समूहों का सिद्धांत – मानवीय विकास की व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक के द्वारा जो मान्यताएं प्रतिपादित की गई हैं, इनके कुछ निश्चित काल विभाजित किये गए हैं। आधुनिक मनोविज्ञान में अवस्थाओं की अपेक्षा काल को अधिक महत्व दिया गया है, क्योंकि किसी विशिष्ठ अवस्थाओं से बालक का गुजरना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।

मनोविज्ञान के जनक

  • मनोविज्ञान का जनक ‘विलियम जेम्स’ को माना जाता है।
  • प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के जनक ‘विलियम वुंट’ को माना जाता है।
  • शिक्षा मनोविज्ञान के जनक ‘थर्नडाइक’ है।

निष्कर्ष –

मनोविज्ञान को मन का विज्ञान कहना सबसे उचित होगा क्योंकि हम मन का अध्ययन कर के ही शिक्षा को समाज में सही तरीके से व्यवहार में ला सकेंगे। आधुनिक समाज में मनोविज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता है , जिससे समाज स्वस्थ और  आगे की दिशा में अग्रसर हो सके।

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