अवलोकन क्या है? इसकी परिभाषा,विशेषताएँ एवं प्रकार(Observation)

अवलोकन क्या है –

अवलोकन को अंग्रेजी में Observation कहा जाता है, जिसका अर्थ है निरीक्षण करना, परीक्षा करना या ध्यान से देखना है। अवलोकन निरीक्षण करने की सबसे साधारण तथा वैज्ञानिक पद्धति के साथ – साथ यह एक प्राचीन पद्धति भी है। यह एक प्राथमिक तथ्य संकलन की विधि है, इसे शास्त्रीय अध्ययन भी कहा जाता है।

अवलोकन की परिभाषा –

प्रो. सी. ए. मोजर के अनुसार – “ठोस अर्थों में अवलोकन में कानों एवं वाणी की अपेक्षा नेत्रों के प्रयोग की स्वतंत्रता है।”

जहोदा एवं कुक के अनुसार – “अवलोकन केवल दैनिक जीवन की ही अत्यधिक व्यापक क्रिया मात्र नही है, यह वैज्ञानिक जांच का भी एक प्राथमिक यंत्र है।”

गुडे एवं हॉट के अनुसार – “विज्ञान अवलोकन से प्रारंभ होता है और फिर सत्यापन के लिए अवलोकन पर ही लोट कर आना पड़ता है।”

वोल्फ के अनुसार – “अवलोकन व घटनाओं उनकी विशेषताओं उनके संबंधों की अनुभव द्वारा जांच करने की प्रक्रिया है।”

पालिन यंग के अनुसार – “अवलोकन एक व्यवस्थित तथा जान बुझकर आँखों में किया जाने वाला निरीक्षण है जिसके अंतर्गत हम स्वतः घटित होने वाली घटनाओं को उसी प्रकार देखते हैं और समझते हैं जिस रूप में वह घटित होती है।”

लिंडस गार्डनर के अनुसार – “अनुभवाश्रित उद्देश्यों के लिए जीवनधारियों से संबंधित उनकी स्वाभाविक स्थितियों में उनके व्यवहार तथा का चयन, अभिलेखन तथा कोडबद्ध करना होता है।”

ऑक्सफ़ोर्ड डिक्सनरी के अनुसार – “घटनाओं को ठीक उसी प्रकार से देखना तथा उस घटना को ठीक उसी प्रकार से वर्णन करना, जो वास्तविक रूप में घटित हुई है।”

अवलोकन की विशेषताएँ –

  • प्रत्यक्ष अध्ययन
  • वैज्ञानिक पद्धति
  • उद्देश्यपूर्ण एवं सूक्ष्म अध्ययन
  • मानव इन्द्रियों का पूर्ण उपयोग
  • पारस्पारिक एवं कार्य तथा संबंधों का पता लगाना
  • सामूहिक व्यवहार का अध्ययन

प्रत्यक्ष अध्ययन – प्रत्यक्ष अध्ययन के अंतर्गत हम किसी भी विषय वस्तु की जाँच स्वयं उसी स्थान में जाकर करते हैं, जहाँ पर वह विषय वस्तु घटित हो रही होती है। प्रत्यक्ष अध्ययन के द्वारा ही सटीक रूप से अवलोकन किया जा सकता है।

वैज्ञानिक पद्धति – वैज्ञानिक पद्धति प्रत्यक्ष अध्ययन के तुलना में अधिक भरोसेमंद पद्धति है। वैज्ञानिक पद्धति में किसी भी शोध/अवलोकन का प्रारंभ वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है तथा अंत भी वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है। वैज्ञानिक पद्धति में प्रत्यक्ष अध्ययन के तुलना में और अधिक सटीक तरीके से जानकारी इकठ्ठा किया जाता है।

उद्देश्यपूर्ण एवं सूक्ष्म अध्ययन – उद्देश्यपूर्ण एवं सूक्ष्म अध्ययन का प्रयोग सामूहिक व्यवहार के अध्ययन के लिए किया जाता है। सामूहिक व्यवहार से तात्पर्य है, एक ही क्षेत्र में एक ही समय पर कई घटनाएँ घटित होना। इस तरह की परिस्थिति में शोधकर्ता अपने उद्देश्यों के आधार पर घटना का अवलोकन कर Data का संग्रहण करता है,तथा इसी Data के आधार पर उस घटना की बारीकी से अध्ययन किया जाता है।

मानव इन्द्रियों का पूर्ण उपयोग – मानव इन्द्रियों का पूर्ण उपयोग से तात्पर्य देखने, सुनने, सूंघने तथा महसूस करने से है। इस पद्धति में शोधकर्ता उस क्षेत्र का जहाँ घटना घटित हो रही है, अपनी इन्द्रियों के सहायता से स्थिति का अवलोकन करना है।

पारस्परिक एवं कार्य तथा संबंधों का पता लगाना – पारस्परिक एवं कार्य तथा संबंधों का पता लगाने से तात्पर्य है, जो कार्य किया जा रहा है, वह किस कारण से किया जा रहा है? तथा इसका असर क्या हो रहा है से है। इसे कारण तथा संबंधों का ज्ञान या कार्य तथा कार्य के कारण के रूप में देख सकते हैं। उदहारण के लिए जैसे अगर शोधकर्ता स्कूल में दिए जाने वाले भोजन का अवलोकन करता है, तो वह भोजन देने के कारण की जानकारी इकठ्ठा करेगा, फिर स्कूल में भोजन की पर्याप्त मात्रा देखेगा, भोजन की वितरण प्रणाली, भोजन की गुणवता तथा साथ में बच्चे का उस भोजन के प्रति रूचि का भी अध्ययन/अवलोकन करेगा।

सामूहिक व्यवहार का अध्ययन – सामूहिक व्यवहार का अध्ययन करने के लिए शोधकर्ता अवलोकन विधि का प्रयोग कर सकते हैं। इसमें शोधकर्ता ऐसी जगह को ले सकते है, जहाँ भीड़ ज्यादा इकट्ठी होती हो तथा वहां जरुरत का सामान भी मिलती हो। हम एक रेस्टोरेंट का उदहारण ले सकते है, जहाँ विभिन्न विभिन्न प्रकार के खाने के वस्तुओं के प्रति लोगों के इच्छा तथा ग्राहकों के प्रति कर्मचारियों का व्यवहार का अवलोकन किया जा सकता है।

अवलोकन के प्रकार –

  • नियंत्रित अवलोकन
  • अनियंत्रित अवलोकन
  • सहभागी अवलोकन
  • असहभागी अवलोकन
  • अर्ध-सहभागी अवलोकन
  • सामूहिक अवलोकन

नियंत्रित अवलोकन – नियंत्रित अवलोकन अधिकतर प्राकृतिक विज्ञानों में किया जाता है, इसमें घटना पर अध्ययनकर्ता पर नियंत्रण रखा जाता है। प्रयोगशालाओं में किया जाने वाला अध्ययन नियंत्रित अवलोकन है। नियंत्रित अवलोकन में अध्ययनकर्ता स्वयं या घटना पर योजनाबद्ध रूप से नियंत्रण रखता है।

अनियंत्रित अवलोकन – इसमें घटना पर और अध्ययनकर्ता पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं होता है। वह स्वतंत्र होता है और किसी भी घटना का अध्ययन कर सकता है। ‘जहोदा एवं कूक’ इसे ‘असंचरित अवलोकन’ कहते हैं।

सहभागी अवलोकन – इसका उल्लेख लिंडमैन ने 1924 में प्रकाशित पुस्तक (Social Discovery) में किया था। सहभागी अवलोकन में अध्ययनकर्ता अध्ययन किये जाने वाले समूह का सदस्य बन जाता है और उससे संबंधित तथ्यों को संकलित करता है।

असहभागी अवलोकन – अध्ययनकर्ता समूह के जीवन में भाग लिए बिना समूह की क्रियाओं से अलग रहकर एक वैज्ञानिक की भांति दृष्टा रूप में उनका अध्ययन करता है। इसे असहभागी अवलोकन कहते हैं।

अर्ध-सहभागी अवलोकन – इसमें अध्ययनकर्ता समूह के दैनिक कार्यों में तो सहभागी बनता है लेकिन किसी विशेष उत्सव, घटना, क्रिया एवं समारोह के अवसर पर दूर बैठकर उनका अध्ययन करता है।

सामूहिक अवलोकन – इसमें मानव मस्तिष्क की एक सीमा होती है, इसीलिए कई लोग मिलकर किसी घटना का अध्ययन करने का प्रयास करते हैं। यह नियंत्रित एवं अनियंत्रित दोनों का मिश्रण है।

अवलोकन विधि के गुण-

  • सरल एवं प्राथमिक विधि
  • यथार्थ एवं विश्वसनीयता
  • प्राकल्पना के निर्माण में सहायक
  • सर्वाधिक प्रचलित विधि
  • सत्यापन की सुविधा
  • निरंतर उपयोग की सुविधा

सरल एवं प्राथमिक विधि – अवलोकन की मुख्य विशेषता इसकी सरल प्रकृति है क्योंकि व्यक्ति नई परिस्थितियों एवं घटनाओं को स्वयं अपने आंखों से देखता है। इसीलिए सामाजिक अनुसंधान की विभिन्न विधियों में अवलोकन विधि सबसे सरल है, क्योंकि दूसरे विधियों की तरह इसमें अवलोकनकर्ता के लिए विशेष ज्ञान और प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। मनुष्य प्राचीन काल से ही अवलोकन का प्रयोग स्वाभाविक रूप से करता आया है। अतः यह एक प्राथमिक विधि है।

यथार्थ एवं विश्वसनीयता – इस विधि में जो अवलोकनकर्ता होता है वह दूसरों पर निर्भर नहीं रहता है। वह स्वयं अपने आंखों से घटनाओं का अवलोकन करता है। इसीलिए यह विधि दूसरे विधियों के तुलना ज्यादा विश्वसनीय है।

प्राकल्पना के निर्माण में सहायक – अवलोकन के समय में मनुष्य को कई घटनाओं को देखने, सुनने और समझने का अवसर मिलता है, जिससे उसके अनुभवों में वृद्धि होती है। जिसके कारण अवलोकनकर्ता तरह – तरह के प्राकल्पनाओं का निर्माण करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।

सर्वाधिक प्रचलित विधि – अवलोकन सामाजिक अनुसंधान में ही नहीं बल्कि अन्य सामाजिक, प्राकृतिक और भौतिक विज्ञानों में भी अवलोकन अनुसंधान का एक बहुत ही महत्वपूर्ण चरण माना गया है। जिसका प्रचलन बहुत समय पहले से ही है।

सत्यापन की सुविधा – अवलोकन में संकलित किए गए तथ्यों की सत्यता की परख सरलता से की जा सकती है और अगर किसी कारण वश सूचनाओं के संकलन में कोई त्रुटि रह जाती है या अवलोकन के द्वारा निष्कर्षों के संबंध में कोई डाउट रह जाती है तो अवलोकन द्वारा फिर से परीक्षण करके डाउट एवं गलती को दूर किया जा सकता है।

निरंतर उपयोग की सुविधा – अवलोकन का प्रयोग निरंतर किया जा सकता है। हम अपने आस – पास के घटनाओं का अवलोकन कर अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकते हैं और प्राकल्पनाओं का आधार तय कर सकते हैं।

अवलोकन विधि के दोष या सीमाएं –

अवलोकन में कुछ प्रमुख दोष पाए जाते हैं जो निम्नलिखित हैं –

  • ज्ञानेंद्रियों की सीमाएं
  • व्यवहार की कृत्रिमता
  • पक्षपात की संभावना
  • कुछ अध्ययनों में अनुपयुक्त्ता

ज्ञानेंद्रियों की सीमाएं – अवलोकन का कार्य ज्ञानेंद्रियों यानिकी आंखों से को जाती है। जिसकी शक्ति अचूक नहीं है, यह कई बार विभिन्नतापूर्ण, अनिश्चित एवं पक्षपातपूर्ण ढंग से कार्य करती है। हमारे आंख और कान कुछ विशेष घटनाओं की ओर शीघ्र आकर्षित होते हैं। ऐसे परिस्थिति में हमारा अध्ययन दोषपूर्ण हो जाता है।

व्यवहार की कृत्रिमता – जब किसी को पता चलता है कि उसके व्यवहारों का अवलोकन किया जा रहा है तो वह अपने व्यवहार में कृत्रिमता या दिखावापन करने लगता है और तभी स्वाभाविकता नष्ट हो जाता है।

पक्षपात की संभावना – अवलोकन की गई घटनाओं का अर्थ, विचारों,मूल्यों एवं संस्कृति का भी अवलोकनकर्ता में प्रभाव पड़ता है।

कुछ अध्ययनों में अनुपयुक्त्ता – कुछ ऐसी घटनाएं हैं जैसे व्यक्तिगत जीवन की घटना, अपराध जैसी घटनाओं का अवलोकन नहीं किया जा सकता। कुछ अवलोकन संभव होते हैं और कुछ संभव नहीं होते हैं।

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