हिन्दी भाषा और उसकी अभिव्यक्ति
हिन्दी भाषा का इतिहास को संक्षेप में देखने की प्रयास करे –
- हिन्दी भाषा की व्युत्पत्ति ‘ईरानियों’ की देन है। फारसी में ‘स’ को ‘ह’ बोला जाता था। ईरानियों द्वारा हिंदु या सिन्धु नदी के पार का संपूर्ण भू-भाग को हिन्द या हिंदुस्तान बोला जाता था। हिंदी भाषा भारोपीय भाषा परिवार की भाषा है। हिंदी फारसी भाषा का शब्द है। हिंदी शब्द का जन्म संस्कृत भाषा के सिन्धु शब्द से हुआ है एवं इसका पहला प्रयोग ईरान के निवासियों ने किया था। हिंदी भाषा की मूल उत्पत्ति ‘शौरसेनी अपभ्रंश’ से मानी जाती है। अपभ्रंश को हिंदी की जननी कहते हैं, जबकि संस्कृत भारत के सबसे प्राचीन भाषा है जिसे आर्यभाषा (आदिजननी) या देवभाषा (देववाणी) कहते हैं।
- अपभ्रंश में केवल 8 स्वर थे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ। इन्हीं स्वरों को मूल स्वर कहा जाता था, किन्तु आदिकालीन हिंदी में दो नये स्वर ‘ऐ’ और ‘औ’ भी जोड़े गए, जो कि संयुक्त स्वर है। अपभ्रंश में ड, ढ व्यंजन नहीं थे इनका विकास आदिकाल में हुआ।
भारतीय आर्य भाषा की विभाजित काल को जानने के लिए यहां देखे –
भारतीय आर्य भाषा को तीन कालो में विभाजित किया गया है।
- प्राचीन आर्यभाषा काल (1500 ई. पू. से 500 ई. पू. तक)
- मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा काल (500 ई. पू. से 1000 ई. तक)
- आधुनिक भारतीय आर्यभाषा काल (1000 ई. से अब तक)
हिंदी का विकास क्रम जो क्रमबद्ध तरीके से दिया गया है-
संस्कृत → पालि → प्राकृत → अपभ्रंष → हिन्दी
- अपभ्रंष और हिंदी के बीच और एक भाषा है, जिसे ‘अवहट्ठ’ भाषा कहा जाता है। कुछ विद्वान इसको अपभ्रंष ही कहते हैं।
- विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा ‘हिंदी भाषा’ है। इसे भारत की राजभाषा कहा जाता है। हिंदी को राजभाषा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि राजकीय कार्यों में हिंदी भाषा का प्रयोग होता है। 14 सितम्बर 1949 ई. को हिंदी को संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा घोषित किया गया था। इसलिए हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।
- हिंदी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है।
- देवनागरी लिपि को ब्राम्ही लिपि भी कहा जाता है।
हिंदी की क्या क्या 5 उपभाषाएँ है जिसे जानना सभी विद्यार्थी के लिए जरूरी है–
- पूर्वी हिंदी (अर्धमागधी) – अपभ्रंश
- बिहारी हिंदी (मागधी)
- पश्चिमी हिंदी (शौरसेनी)
- राजस्थानी हिंदी (शौरसेनी)
- पहाड़ी हिंदी (खस-शौरसेनी-अपभ्रंश)
लिपि क्या है अति महत्वपूर्ण टॉपिक को ध्यान से समझे –
सबसे पहले भाषा का जन्म हुआ और उसकी सार्वाभौमिकता और एकात्मकता के लिए लिपि का अविष्कार हुआ। भाषा की अभिव्यक्ति ही लिपि है।
हिंदी वर्णमाला के बारे में थोड़ी सी जानकारी–
वर्णों के समूह को ही वर्णमाला कहते हैं। हिंदी भाषा में 52 वर्ण होते हैं।
वर्ण की परिभाषा जो हिंदी व्याकरण के आधार पर दिया गया है
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वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं, उसे वर्ण कहते हैं।
हिंदी भाषा को दो भागों में बांटा गया है –
- स्वर वर्ण (Vowel)
- व्यंजन वर्ण (Consonant)
स्वर वर्ण – जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अवरोध के और बिना किसी दूसरे की सहायता से होता है, उसे स्वर वर्ण कहते हैं।
स्वरों की संख्या 11 होती है. अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ
स्वर तीन प्रकार के होते हैं –
- हस्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
हस्व स्वर – जिन स्वरों को बोलते समय हम ज्यादा जोर ना लगाएँ, वह ‘हस्व स्वर’ कहलाता है। जैसे – अ, इ, उ, ऋ.
दीर्घ स्वर – जिन स्वरों को बोलते समय हम ज्यादा जोर लगाते हैं, जैसे – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
प्लुत स्वर – यह ‘ह्रस्व’ और ‘दीर्घ’ दोनों स्वरों से इस स्वर में ज्यादा जोर लगता है, इसे प्लुत स्वर कहते हैं। जैसे – ओ, ऊ।
स्वरों का वर्गीकरण –
- अनुस्वार – स्वर के बाद बोला जाने वाला हलंत (﮲) अनुस्वार कहलाता है। जैसे – कंठ, मंद, छंद आदि।
- विसर्ग – विसर्ग (:) महाप्राण सूचक एक स्वर है। जैसे अतः, सम्भवतः आदि।
संवृत और विवृत स्वर –
- संवृत स्वर – संवृत स्वर को उच्चारण करते समय मुंह छोटा खुलता है। जैसे – इ, ई, उ, ऊ।
- अर्ध संवृत स्वर – इसका उच्चारण करते समय मुँह थोड़ा बड़ा खुलता है। जैसे – ए, ओ।
- विवृत स्वर – इसके उच्चारण में मुंह का द्वार पूरा खुलता है। जैसे – आ।
व्यंजन वर्ण (Consonant) – स्वरों की सहायता से बोले जाने वाले वर्ण व्यंजन कहलाते हैं।
- व्यंजनों की संख्या 33 होती है।
- स्पर्श व्यंजन कुल 25 होते हैं – क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म
- जिन व्यंजनों का उच्चारण कंठ से होता है, उसे ‘कंठ व्यंजन’ कहा जाता है। जैसे – क, ख, ग, घ, ङ।
- जिन व्यंजनों का उच्चारण तालु से होता है, उसे ‘तालव्य व्यंजन’ कहा जाता है। जैसे – च, छ, ज, झ, ञ, श, य।
- जिन वर्णों का उच्चारण मूर्धन्य से होता है उसे ‘मूर्धन्य व्यंजन’ कहा जाता है। जैसे – ट, ठ, ड, ढ, ण, ष।
- जिन व्यंजनों का उच्चारण ‘दन्त’ से होता है, उसे ‘दन्त व्यंजन’ कहा जाता है। जैसे – त, थ, द, ध, न।
- जिन व्यंजनों का उच्चारण ‘ओंठ’ से होता है, उसे ‘ओष्ठ्य व्यंजन’ कहा जाता है। जैसे – प, फ, ब, भ , म।
- अन्तस्थ व्यंजनों की संख्या कुल 4 होती है। य, र, ल, व।
- ऊष्म व्यंजनों की संख्या कुल 4 होती है। श, ष, स , ह।
- संयुक्त व्यंजन की संख्या भी कुल 4 होती है। क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।
- आगत व्यंजनों की संख्या 2 होती है। ज, फ़।
- अर्धस्वर ‘य’, ‘व’ को कहा जाता है।
- लुंठित या प्रकम्पित व्यंजन ‘र’ को कहा जाता है।
- पार्श्विक व्यंजन ‘ल’ को कहा जाता है।
- नाक के द्वारा बोले जाने वाले व्यंजन को नासिक्य व्यंजन कहा जाता है। ङ, ञ, ण, न, म।
- स्वर्यान्त्रीय व्यंजन ‘ह’ को कहा जाता है।