अधिगम का अर्थ, परिभाषा,सिध्दान्त, विशेषता,कारक(Learning)| सीखना क्या है?

अधिगम (Learning)/ सीखना क्या है?

अधिगम का अर्थ ‘सीखना’ होता है। सीखना या अधिगम एक बहुत ही व्यापक एवं महत्वपूर्ण शब्द है। मानव के प्रत्येक क्षेत्र में सीखना जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक पाया जाता है, दैनिक जीवन में सीखने के अनेक उदहारण दिए जा सकते हैं। सीखना मनुष्य की जन्मजात प्रकृति है, प्रतिदिन प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में नए अनुभवों को एकत्र करते रहता है। अधिगम व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है, इसके द्वारा जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

                  ‘क्रो एंड क्रो’ के अनुसार, “सीखना आदतों, ज्ञान एवं अभिव्यक्तियों का अर्जन है।” इसमें कार्यों को करने के नवीन तरीके सम्मिलित है। यह व्यक्ति को अपने अभिप्राय अथवा लक्ष्य को पाने में समर्थ बनाती है। नवीन अनुभव व्यक्ति के व्यवहार में वृद्धि तथा संशोधन करता है इसलिए यह अनुभव तथा इनका उपयोग ही सीखना या अधिगम करना कहलाता है।

परिभाषा

अधिगम एक बहुत ही सामान्य और आम प्रचलित प्रक्रिया है। जन्म के तुरंत बाद से ही व्यक्ति सीखना प्रारंभ कर देता है और फिर जीवनपर्यंत कुछ ना कुछ सीखता रहता है।

  • वुडवर्थ के अनुसार, “नवीन ज्ञान और नवीन प्रक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया, सीखने की प्रक्रिया है।”
  • गेट्स एवं अन्य के अनुसार, “अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन लाना ही अधिगम या सीखना है।”
  • कॉनवेक के अनुसार , “सीखना या अधिगम अनुभव के परिणाम स्वरुप व्यवहार में परिवर्तन द्वारा व्यक्त होता है।”
  • मार्गन और गिलीलैंड के अनुसार, “अधिगम या सीखना अनुभव के परिणाम स्वरुप प्राणी के व्यवहार के कुछ परिमार्जन है, जो कम से कम कुछ समय के लिए प्राणी द्वारा धारण किया जाता है।”
  • जी. डी. बोआस के अनुसार, “अधिगम या सीखना एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति विभिन्न आदतें ज्ञान एवं दृष्टिकोण अर्जित करता है जो कि सामान्य जीवन की मांगों को पूरा करने के लिए आवश्यक है।”
  • हिलगार्ड के अनुसार, “सीखना या अधिगम एक प्रक्रम है जिससे प्रतिफल परिस्थिति से प्रतिक्रिया के द्वारा कोई क्रिया आरम्भ होती है या परिवर्तन होती है, बशर्ते कि क्रिया में परिवर्तन की विशेषताओं को जन्मजात प्रवृत्तियों परिपक्वता और प्राणी की अस्थाई अवस्थाओं के आधार पर ना समझाया जा सकता हो।”
  • ब्लेयर, जोन्स और सिम्पसन के अनुसार, “व्यवहार में कोई परिवर्तन जो अनुभवों का परिणाम है और जिसके फलस्वरूप व्यक्ति आने वाली स्थितियों का भिन्न प्रकार से सामना करता है अधिगम कहलाता है।” 
  • सरटैन, नार्थ, स्ट्रेंज तथा चेपमैन के अनुसार, “सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा अनुभूति या अभ्यास के फलस्वरूप व्यवहार में अपेक्षाकृत स्थाई परिवर्तन होता है।”

सिध्दान्त / अवधारणा  –

सीखने के आधुनिक सिध्दान्त/अवधारणाओं को निम्नलिखित दो मुख्य श्रेणियों में विभक्त किया गया है

  1. व्यवहारवादी साहचर्य सिध्दान्त – विभिन्न उद्दीपनों के प्रति सीखने वाले की विशेष अनुक्रियाएँ होती हैं। इन उद्दीपनों तथा अनुक्रियाओं के साहचर्य से उसके व्यवहार में जो परिवर्तन आते हैं, उनकी व्याख्या करना ही इस सिधान्त का उद्देश्य होता
    है । इस प्रकार के सिध्दान्तों के अंतर्गत थार्नडाइक, वाटसन, और पैवलाव तथा स्किनर के अधिगम सिध्दान्त आते हैं
  2. ज्ञानात्मक व क्षेत्र संगठनात्मक सिद्धान्त – अधिगम का यह सिद्धान्त सीखने की प्रक्रिया में उद्देश्य अंतदृष्टि और सूझबूझ के महत्व को प्रदर्शित करता है। इस प्रकार के सिद्धांतों के अंतर्गत कोलहर एवं लेविन के अधिगम सिद्धान्त आते हैं।
  3. थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिध्दान्त – ‘थार्नडाइक’ के अधिगम के सिध्दान्त को प्रयास एवं त्रुटि का सिध्दान्त, उद्दीपन-अनुक्रिया का सिध्दान्त, संयोजनवाद सिध्दान्त आदि नामों से जाना जाता है।

                  थार्नडाइक’ ने अपना प्रयोग एक बिल्ली पर किया. उसने एक भूखी बिल्ली को एक संदूक में बंद कर दिया। संदूक का दरवाजा एक खटके अथवा चटकनी के दबाने से खुलता था। संदूक के बाहर मछली का एक टुकड़ा रख दिया जाता है। भूखी बिल्ली के लिए मछली का टुकड़ा एक उद्दीपन का कार्य करता है। उस टुकड़े को देखकर संदूक में बंद बिल्ली ने अनुक्रिया प्रारंभ कर दी। बिल्ली ने बाहर निकलने की पूरी कोशिश की तथा एक बार पंजा दरवाजे पर पड़ा और वह खुल गया। बिल्ली ने बाहर रखा हुआ मछली खा लिया।

                    ‘थार्नडाइक’ ने इस प्रयोग को कई बार दोहराया और बिल्ली कई बार अनुक्रिया करते-करते अंत में बिना कोई भूल किये वह संदूक का दरवाजा खोलना सीख गई। उद्दीपक व्यक्ति को सीखने के लिए प्रेरित करता है।

  • शिक्षक इस सिध्दान्त के द्वारा ही समझते हैं कि बच्चे विभिन्न कौंशलों को सीखने की प्रक्रिया में गलतियाँ कर सकते हैं।
  • इस सिधान्त के आधार पर बच्चों को सीखने के लिए अभिप्रेरित करने पर जोर दिया जाता है।
  • इस सिध्दान्त के आधार पर बार-बार के अभ्यासों से बच्चों की आदतों में सुधार किया जा सकता है और उसकी गलतियों को कम किया जा सकता है।
  • वाटसन एवं पैवेलॉव का शास्त्रीय अनुबंध का सिध्दान्त – 
  • वाटसन का प्रयोग – वाटसन नामक मनोवैज्ञानिकने स्वयं अपने 11 महीने के पुत्र ‘अलबर्ट’ के साथ प्रयोग किया। उसे खेलने के लिए एक खरगोश दिया, बच्चे को उस खरगोश के नरम-नरम बालों पर हाथ फेरना अच्छा लगता था। वाटसन ने बच्चे को कुछ दिनों तक ऐसा करने दिया। कुछ दिनों बाद वाटसन ने बच्चे के खरगोश को छूने पर डरावनी आवाज निकलता था, इसके बाद डरावनी आवाज नहीं निकालने पर भी बच्चा खरगोश को देखने से ही डर जाता था।
  • पैवलाव का प्रयोग – पैवलाव ने अपने प्रयोग में एक कुत्ते को भूखे रखकर उसे एक मेज के साथ बाँध दिया। रोज घंटी बजने के साथ ही कुत्ते के सामने खाना रख दिया जाता था, खाना देख कर कुत्ते के मुंह में लार आ जाता था। कुछ दिनों तक ऐसा ही किया गया और एक दिन सिर्फ घंटी बजाई गई, और घंटी की आवाज सुनते ही कुत्ते के मुंह से लार टपकना शुरू हो गया। कुत्ते ने यह सीखा कि जब घंटी बजती है तब खाना मिलता है।
  • स्किनर का सक्रिय अनुबंध का सिद्धांत – स्किनर ने अपने अधिगम के सिद्धांत में सन 1930 में सफ़ेद चूहे पर एक प्रयोग किया। उसने एक बक्सा लिया जिसमें एक छोटा सा रास्ता था, जिसमें एक पुल लगा हुआ था, पुल को दबाने से खट की आवाज होती थी और एक कप में खाने का एक टुकड़ा आ जाता था। भूखे चूहे को जब रोज इस बक्से में उस रास्ते छोड़ा जता  था तो पुल पर उसका पैर पड़ने से आवाज होती थी और उस कप पर खाने का टुकड़ा आ जाता था। उन्होंने इस क्रिया को बार-बार दोहराया..
    • कोलहर का अंतदृष्टि या सूझ का सिद्धान्त – कोलहर ने सुल्तान नामक एक भूखे चिम्पांजी को बंद कर दिया और कमरे के छत में कुछ केले टांग दिए थे। उसने कमरे में तीन-चार खाली बक्से भी रख दिए। चिम्पांजी केलों को देखकर उछल-कूद करके उन केलों को पहुँचाने की कोशिश कर रहा था, पर असफल रहा, फिर उसने एक बक्से को रखकर उसके ऊपर चढ़कर केले को पहुँचाने की कोशिश की पर असफल रहा फिर उसने दूसरा फिर तीसरा बक्से को रखा और चढ़ गया और केले को पहुँचाने में सफल रहा। इससे अंत में चिम्पांजी को समस्या को समझकर उसको हल करना उसके दिमाग में आ गया।
      • अंतदृष्टि सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता – जब पढाया जाए और कुछ सीखने के लिए कहा जाए तो उसे अपने समग्र रूप में ही बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जाए। बच्चों की अंतदृष्टि या सूझ-बूझ बहुत सहायक होती है।
      • लेविन का अधिगम सम्बन्धी क्षेत्र सिद्धान्त –  इस सिद्धान्त के अनुसार सीखना अथवा अधिगम एक सापेक्षिक प्रक्रिया है, जिसमें सीखने वाले में नवीन अंतदृष्टि का विकास होता है। इसके सिद्धान्त के मुख्य चार तत्व है – अभिप्रेरणा, शक्ति, जीवन विस्तार एवं अवरोध
  • अभिप्रेरणा – अभिप्रेरणा वह प्रक्रिया है, जिसमें प्रेरक विशिष्ट उद्देश्य के साथ संबंधित होते हैं। इस प्रेरक की सन्तुष्टि इन उद्देश्य को प्राप्त करके होती है।
  • शक्ति – व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मक उद्देश्य और नकारात्मक उद्देश्य रखता है। सकारात्मक उद्देश्य वे होते हैं,जिनसे प्रेरित होकर व्यक्ति उस ओर बढ़ता है। नकारात्मक उद्देश्य से व्यक्ति पीछे हटने की कोशिश करता है। अधिगम के इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे के सामने सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियाँ उपस्थित रहती है, जो अधिगम की प्रेरणा देती है।
  • जीवन-विस्तार – व्यक्ति की कुछ आवश्यकताएं तथा योग्यताएं होती है,जो व्यक्ति में निहित होती है, लेविन ने व्यक्ति की सीमा की अवधारणा की है। इसके बाद वातावरण आता है, जो कि जीवन विस्तार की सीमा से घिरा होता है।
  • अवरोध – वातावरण में कुछ ऐसी शक्तियाँ होती है, जो व्यक्ति को उसके उद्देश्यों तक पहुँचाने में अवरोध उत्पन्न करती है तथा व्यक्ति को अपने लक्ष्य की और बढ़ने का विरोध करती है। यदि व्यक्ति को अपने उद्देश्य की ओर बढ़ने के लिए अभिप्रेरणा मिलती है तो वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। अगर बीच में अभिप्रेरणा नहीं मिलती है, तो वह व्यक्ति अपना रास्ता छोड़ देता है और निराश होकर अपने उद्देश्य को छोड़ देता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता है।
  • क्षेत्र सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता – क्षेत्र सिद्धान्त यह बताता है कि सीखना सभी तरह से एक उद्देश्यपूर्ण और लक्ष्योंमुक प्रक्रिया है। क्षेत्र सिद्धान्त की सहायता से शिक्षकों को शिक्षण-अधिगम व्यवस्था के उचित नियोजन, व्यवस्था तथा प्रबन्धीकरण में सहायता मिलती है।

अध्ययन की सुविधा के लिए अधिगम के सिद्धान्तों का वर्णन –

  1. प्रयत्न और भूल का सिद्धान्त
  2. सम्बद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धान्त
  3. आपरेंट कंडीशनिंग या स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबन्धन
  4. अंतरदृष्टि या सूझ का सिद्धान्त
  5. अनुकरण का सिद्धान्त
  6. प्रयत्न और भूल का सिद्धान्त – किसी कार्य को हम एकदम से नहीं सीख पाते हैं। सीखने की प्रक्रिया में हम प्रयत्न करते हैं और बाधाओं के कारण भूलें भी होती है। लगातार प्रयत्न करने से सीखने में प्रगति होती है और भूलें कम हो जाती है। अतः किसी क्रिया के प्रति बार-बार प्रयास करने से भूलों का हराष होता है, तो इसको प्रयत्न और भूल का सिद्धांत कहते हैं।
  7. वुडवर्थ के अनुसार – “प्रयत्न और त्रुटि में किसी कार्य को करने के लिए अनेक प्रयत्न करने पड़ते हैं, जिनमें अधिकांश गलत होते हैं।
  8. एल. रेन के अनुसार – “संयोजन सिद्धान्त वह सिद्धान्त है, जो यह मानता है कि प्रक्रियाएं परिस्थिति और प्रतिक्रिया में होने वाले मूल या अर्जित कार्य सम्मिलित है।”
  9. सम्बद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धान्त – साहचर्य के द्वारा सीखने में सम्बद्ध सहज क्रिया सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। जब हम अस्वाभाविक उद्दीपक के प्रति स्वाभाविक प्रतिचार करने लगता हैं, तो वहां पर सम्बद्ध प्रतिक्रिया करने लगते हैं, तो वहां पर सम्बद्ध प्रतिक्रिया के  द्वारा सीखना उत्पन्न होता है। जब खाने को देखने पर कुत्ते के मुंह में लार आ जाती है या घंटी बजने पर लार आने लगे तो सम्बद्ध प्रतिक्रिया के द्वारा सीखना होता है।
  10. अपरेंट कंडीशनिंग या स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबन्धन – उत्तेजक प्रतिक्रिया अधिगम सिद्धांतों की कोटि में बी. एफ. स्किनर ने सन 1938 में किया। प्रसूत अधिगम प्रतिक्रिया को विशेष आधार देकर महान योगदान दिया। स्किनर ने इस प्रक्रिया को प्रमाणित करने के लिए मंजूषा का निर्माण किया जिसे स्किनर बॉक्स या स्किनर मंजूषा के नाम से जाना जाता है।
  11. अंतदृष्टि या सूझ का सिद्धान्त – सीखने का सुझ का सिद्धान्त गेस्टालवादियों की देन है। वे लोग समग्र में विश्वास करते हैं अंश में नहीं। जैसा कलसनिक ने लिखा है – “अधिगम व्यक्ति के वातावरण के प्रति सूझ तथा अविष्कार के सम्बन्ध को स्पष्ठ करने वाली प्रक्रिया है।”
  12. अनुकरण का सिद्धान्त – अनुकरण एक सामान्य प्रकृति है, जिसका प्रयोग मानव दैनिक जीवन की समस्याओं को सुलझाने में करता है। अनुकरण में हम दूसरों को किया करते हुए देखते हैं और वैसा ही करना सीख लेते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि अनुकरण के द्वारा भी सीखा जा सकता है। अनुकरण सिद्धान्त मानव में अधिक सफल हुआ है।

विशेषता

  • अधिगम व्यवहार में होने वाला परिवर्तन है।
  • अधिगम कोई नया कार्य करना है।
  • अधिगम आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है।
  • अधिगम सार्वभोमिक है।
  • अधिगम अनुकूल है, अधिगम उद्देश्यपूर्ण है।
  • अधिगम विवेकपूर्ण है, अधिगम व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों है।
  • अधिगम अनुभवों का संगठन है।

   कारक

  • विसय्वास्तु का प्रस्तुतीकरण
  • बालकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य
  • सीखने की इच्छा
  • अधिगम का समय व वातावरण, अभिप्रेरणा
  • सीखने के लिए उचित वातावरण
  • अध्यापक की भूमिका

  अधिगम मूल्यांकन क्या है ?

मूल्यांकन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का एक सोपान है, जिसमें शिक्षक यह सुनिश्चित करता है कि उसके द्वारा की गई व्यवस्था तथा शिक्षण को आगे बढ़ाने की क्रियाएँ कितनी सफल हो रही है। मापन के आधार पर शिक्षक और शिक्षार्थियों में आवश्यक सुधार लाने के उद्देश्य से मूल्यांकन की प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों के लिए पुनर्बल का कार्य करता है।

    अधिगम मूल्यांकन की विशेषताएँ

  • मूल्यांकन शिक्षा-प्राप्ति के बाद किया जाता है।
  • सूचना अध्यापक द्वारा एकत्र की जाती है।
  • सूचना को सामान्य रूप से अंकों अथवा ग्रेडों में बदला जाता है।
  • दूसरे बच्चों के कार्य-निष्पादन के साथ तुलना की जाती है।
  • इसके पहले प्राप्त की गई शिक्षा पर नजर डालता है।

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