हिंदी साहित्य का इतिहास एवं काल विभाजन

‘हिंदी’ हमारी राष्ट्रीय भाषा है, यह विश्व में दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी साहित्य की शुरुआत लोकभाषा कविता के माध्यम से हुई है।

हिंदी साहित्य का आरंभ –

हिंदी साहित्य का आरंभ अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार के साहित्य होते हैं – गद्य , पद्य एवं चंपू। इसमें गद्य और पद्य दोनों के मिश्रण को चंपू कहते हैं। हिंदी साहित्य का आरंभ 8वीं शताब्दी से माना जाता है। जब सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु हुई उसके बाद देश में अनेक छोटे – छोटे शासन केंद्र स्थापित हो गए ।

अब तक के लिखे गए हिंदी साहित्य के इतिहास में से अधिक ‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल’ जी के द्वारा लिखा गया ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ को सबसे प्रामाणिक और व्यवस्थित इतिहास माना जाता है। शुक्ल जी ने इसे “हिंदी शब्द सागर की भूमिका” में लिखा था, जिसे 1929 ई. में प्रकाशित किया गया।

काल विभाजन –

हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया गया है –

आदिकाल – ( 1000 -1350 ई.)

भक्तिकाल – (1350 – 1650 ई.)

रीतिकाल – (1650 – 1850 ई.)

आधुनिक काल – (1850 से अब तक)

आदिकाल –

हिंदी साहित्य के प्रथम चरण को आदिकाल कहा जाता है। हिंदी का उद्भव दिल्ली, कन्नौज, अजमेर में विकसित हो रही थी। उस समय दिल्ली में ‘पृथ्वीराज चौहान’ का शासन था और इनके एक दरबारी कवि थे जिसका नाम था “चंदबरदाई”। इस काल की सबसे प्रसिद्ध रचना “पृथ्वीराज रासो” थी जिनके लेखक चंदबरदाई हैं। इस रचना में पृथ्वीराज चौहान की जीवन गाथा लिखी गई है। इसे वीर रासो भी कहा जाता है।

आदिकाल का नामकरण –

विद्वानों ने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ के अलग – अलग नाम दिए हैं जो निम्नलिखित हैं –

लेखकों के नाम नामकरण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी – आदिकाल

आचार्य रामचंद्र शुक्ल। – वीरगाथा काल

महावीर प्रसाद द्विवेदी – बिजवपन काल

मिश्र बंधु – आरंभिक काल

रामकुमार वर्मा – चारण काल या संधि काल

राहुल सांकृत्यायन – सिद्ध सामंत काल

डॉ.गणपति चंद्र गुप्त – प्रारंभिक या शून्य काल

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र – वीरकाल

चंद्रधर शर्मा गुलेरी – अपभ्रंश काल

जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन – चारण काल

अदिकालीन साहित्य की शैलियां –

आदिकालीन साहित्य में दो प्रकार की शैलीयों का प्रयोग हुआ है –

डिंगल शैली

पिंगल शैली

डिंगल शैली –

डिंगल शैली में अपभ्रंश के साथ राजस्थानी भाषा के मिश्रण को डिंगल शैली कहते हैं। यह कठोर और करकस होता है।

पिंगल शैली –

पिंगल शैली में अपभ्रंश के साथ ब्रज भाषा के मिश्रण को पिंगल शैली कहते हैं। इस शैली की रचनाओं में मधुर – काव्यों का प्रयोग किया जाता है और यह इसीलिए कर्णप्रिय लगते हैं।

भक्तिकाल

भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है क्योंकि भक्तिकाल में रचित साहित्य अपने पूर्ववर्ती काल में उत्कृष्ट कोटि का रहा था। इसीलिए ज्यादातर विद्वान भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग मानते हैं। भक्तिकाल को पूर्व-मध्यकाल भी कहा जाता है इस काल को भक्तिकाल ‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल’ जी ने कहा है।शुक्ल जी ने इसका विभाजन दो धाराओं में किया ‘निर्गुण’ और ‘सगुण’।

भक्तिकाल की धाराएं –

  • सगुण धारा
  • निर्गुण धारा

सगुण धारा –

सगुण धारा के अंतर्गत दो काव्य आते हैं।

रामकाव्य
कृष्णकाव्य

रामकाव्य – सगुण धारा के रामकाव्य कवि ‘तुलसी’ को कहा जाता है।

कृष्णकाव्य – सगुण धारा के कृष्ण काव्य कवि ‘सूरदास’ को कहा जाता है।

निर्गुण धारा

निर्गुण धारा के अंतर्गत दो शाखाएं होती है।

ज्ञानाश्रयी शाखा
प्रेमाश्रयी शाखा

ज्ञानाश्रयी शाखा – इस शाखा के कवियों को संत कवि कहा जाता है एवं ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि ‘कबीर’ हैं।

प्रेमाश्रयी शाखा – इस शाखा के कवि ‘जायसी’ हैं।

भक्तिकाल के चार प्रमुख कवि – कबीर, जायसी, तुलसी और सूरदास हैं।

रीतिकाल

इसे उत्तर – मध्यकाल भी कहा जाता है। रीतिकाल की शुरुआत मुगल सम्राट शाहजहां के समय से होता है। संस्कृत -साहित्य में ‘रीति’ शब्द का प्रयोग किसी विशिष्ट पद – रचना के लिए किया जाता है। ‘संस्कृत काव्यस्शास्त्र’ में सर्वप्रथम ‘आचार्य वामन’ ने रीति शब्द का प्रयोग किया एवं रीति के तीन भेद बताएं हैं – वैदर्भी रीति, पांचाली रीति एवं गौड़ी रीति।

आचार्य वामन ने रीति को काव्य की आत्मा कहा है।

“रीतिरात्मा काव्यस्य”

“भिखारी दास ने अपने ग्रंथ ‘काव्य – निर्णय’ में रीति की परिभाषा देते हुए लिखा है – “काव्य की रीति सिखी सुकविनी, सो देखी सुनी बहुलोक की बातें।” भारतीय इतिहास में रीतिकाल को वैभव युग माना जाता था। इस युग में कवियों को जब पता चला की कविता लिखने से सम्मान और पैसा दोनों मिलता है, तो ज्यादातर लोगों ने इसी कार्य को अपना लिया। इस युग में जिनको इच्छा न थी वह लोग भी कवि बन गए। भिखारी दास,केशव आदि इसी प्रकार के कवि हैं।

रीतिकाल के रचनाओं को तीन भागों में बांटा गया है –

  • रीतिबद्ध
  • रीतिसिद्ध
  • रीतिमुक्त

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