शिक्षा क्या है? शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य एवं विशेषताएं को वास्तविक में समझने की प्रयास करे-

शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा के ‘शिक्ष’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। शिक्षा का अर्थ होता है, सीखना और सीखना। शिक्षा समाज में सदैव चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है, जो मनुष्य को अनुभव द्वारा प्राप्त होता है। शिक्षा केवल विद्यालयों में ही प्राप्त नहीं होती बल्कि शिक्षा हमें किसी भी व्यक्ति से प्राप्त हो सकता है, जो हमें नया ज्ञान एवं अनुभव प्रदान करता है, वह शिक्षा कहलाता है।

शिक्षा की परिभाषा कुछ शिक्षाशास्त्रियों द्वारा दी गई है आइए इसे आगे देखे –

रूसो’ के अनुसार “असल शिक्षा वह है जो मनुष्य के अंदर से उत्पन्न होती है। यह व्यक्ति की आतंरिक शक्तियों की अभिव्यक्ति है।”

जॉन डी.वी. के अनुसार – “जिस प्रकार शारीरिक विकास के लिए भोजन का महत्व है, उसी प्रकार सामाजिक विकास के लिए, शिक्षा का महत्व है।”

स्वामी विवेकानंद के अनुसार – “व्यक्ति के आन्तरिक पहलु की अभिव्यक्ति शिक्षा है।”

अरस्तु के अनुसार – “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण ही शिक्षा है।”

टॉमसन के अनुसार – “शिक्षा वातावरण का व्यक्ति पर वह प्रभाव है, जो उसकी व्यवहारगत आदतों, विचारों तथा अभिवृत्तियों पर स्थायी रूप से डाला जाता है।”

उद्देश्य –

शिक्षा का उद्देश्य यह है कि इससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो और जीवन में आगे जाकर एक अच्छा, जिम्मेदार नागरिक बन सके क्योंकि शिक्षा के बिना इन्सान एक पशु के सामान है।

शिक्षा का महत्व –

हमारे जीवन में शिक्षा का बहुत ही ज्यादा महत्व है क्योंकि शिक्षा ही है जो हमारे अंदर आत्मविश्वास को बढाता है।शिक्षा हमें सही-गलत या अच्छे-बुरे का अनुभव कराती है। शिक्षा के द्वारा ही हम समाज में फैली अन्धविश्वास, कुरीतियों को दूर कर सकतें हैं एवं शिक्षा के बिना हम जीवन में कभी भी सफल नही हो सकते हैं, क्योंकि शिक्षा के बिना हम अधूरे हैं।

शिक्षा की विशेषताएँ –

निरंतर चलने वाली प्रक्रिया- शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के पुरे जीवन में चलती रहती है। हर व्यक्ति कुछ न कुछ सीखता रहता है। चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या न हो पर कुछ न कुछ सीखता रहता है और दूसरों को भी सीखाता है। यह प्रक्रिया एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हमेशा चलती रहती है।

विकास की प्रक्रिया- सिक्षा एक विकास की प्रक्रिया है। जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो वह उस समय विकास की पहली सीढ़ी पर होता है और जैसे-जैसे वह सीखता है वैसे-वैसे वह अपनी विकास की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है। एक बच्चे का शारीरिक, मानसिक,सामाजिक एवं नैतिक विकास होता है और यह विकास की प्रक्रिया व्यक्ति के जीवन के अंत तक चलता रहता है क्योंकि व्यक्ति जीवन के अंत तक कुछ न कुछ सीखता ही रहता है।

समायोजन की प्रक्रिया- शिक्षा एक समायोजन की प्रक्रिया है। शिक्षा के द्वारा ही एक बच्चा समायोजन करना सीखता है। समाज में रहने के लिए चाहे जैसी भी परिस्थिति हो व्यक्ति को उस परिस्थिति से निकलना सिखाती है। शिक्षा के द्वारा बच्चा पर्यावरण के साथ समायोजन करना सीखता है।

द्विमुखी प्रक्रिया- शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में दो पक्ष होते हैं । एक (शिक्षक) और दूसरा (छात्र )। यह द्विमुखी प्रक्रिया दोनों के आपसी सहयोग से चलता है। शिक्षक का कार्य है शिक्षा देना और छात्र का कार्य है शिक्षा ग्रहण करना। यह द्विमुखी प्रक्रिया तभी कहलाएगा जब शिक्षक के द्वारा दिया गया शिक्षा छात्र ग्रहण करेगा,जिसमे एक व्यक्ति दुसरे के विकास में परिवर्तन लाने के लिए कार्य करता है।

त्रिमुखी प्रक्रिया-जान डीवी के अनुसार शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया मन है और इसके तीन पक्ष होते हैं –

शिक्षक, छात्र, पाठ्यक्रम

इसमें शिक्षक और छात्र के बीच की कड़ी पाठ्यक्रम को मन गया है क्योंकि शिक्षक पाठ्यक्रम के अनुसार ही छात्र को पढाता है। उन्हें पाठ्यक्रम से यह पता चलता है कि शिक्षक को क्या पढ़ाना है और छात्र को पता रहता है कि क्या पढना है। इसीलिए शिक्षा कि त्रिमुखी प्रक्रिया कहा जाता है।

सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया- शिक्षा बच्चे के सर्वांगीण विकास की एक प्रक्रिया है। जिसके द्वारा बच्चे का सभी प्रकार से विकास करने का प्रयास किया जाया है। शिक्षा का कार्य केवल बच्चे का शैक्षिक विकास करना ही नहीं बल्कि उसके पुरे व्यक्तित्व का विकास करना होता है।

सचेतन प्रक्रिया- सचेतन को भी शिक्षा की प्रक्रिया मन जाता है। इसमें शिक्षा को सचेतन मन से जानबूझकर ग्रहण किया जाता है।

गत्यात्मक प्रक्रिया- शिक्षा को गत्यात्मक प्रक्रिया भी कहा जाता है क्योंकि शिक्षा एक जगह सीमित नहीं है। जैसे-जैसे बच्चे का विकास होता है वैसे ही शिक्षा की प्रक्रिया भी निरंतर विकसित होती रहती है।

शिक्षा के प्रकार-

वैसे तो शिक्षा के अनेक प्रकार होते हैं, परन्तु शिक्षा के आधार पर इसे तीन भागों में बांटा गया है-

औपचारिक शिक्षा

अनौपचारिक शिक्षा

निरोपचारिक शिक्षा

औपचारिक शिक्षा- औपचारिक विधियों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा को औपचारिक शिक्षा कहा जाता है। इसके पाठ्यक्रम में पहले से ही नियोजित या तय कर दिया जाता है, कि क्या पढ़ाना है और किस विधि से पढ़ाना है। कौन से शिक्षण अधिगम सामग्री कौप्योग करना है। यह स्कूलों में या शिक्षण संस्थानों में दी जाने वाली शिक्षा को औपचारिक शिक्षा कहा जाता है।

अनौपचारिक शिक्षा- अनौपचारिक शिक्षा वह है जो हमें अपने परिवार, वातावरण, पड़ोस, समाज से मिलता है जो जीवन भर चलते रहता है क्योंकि हम रोज कुछ न कुछ सीखते रहते हैं।

निरोपचारिक शिक्षा- निरोपचारिक शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जिसे हम कहीं भी रहकर शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।आजकल इसका ज्यादा उपयोग किया जा रहा है। मुक्त विश्वविद्यालय से, इन्टरनेट से आदि। इस तरह कि शिक्षा को निरोपचारिक शिक्षा कहा जाता है।

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