वातावरण का अर्थ और परिभाषा अपने शब्दो में समझे

वातावरण का अर्थ और परिभाषा

हिंदी में वातावरण का अर्थ को वास्तव में समझने कि कोशिश करे

वातावरण दो शब्दो वात और आवरण से मिलकर बनी हुई है जिसका संधि विच्छेद – वात + आवरण = वातावरण होता है। आइए अब दोनो शब्दो का एक एक करके अर्थ समझने की कोशिश करेंगे । वात का अर्थ होता है हवा या वायु और आवरण का अर्थ होता है चारों ओर से घिरे हुए । अर्थात वातावरण का अर्थ होता है वायु से चारो ओर घिरे हुए ।

वातावरण का पर्यायवाची शब्द अनेक है। जैसे ·पर्यावरण, वायुमंडल, परिवेश,माहौल,परिस्थिति इत्यादि ।

पर्यावरण दो शब्द परि और आवरण से मिलकर बनी हुई है जिसका अर्थ होता है जो हमारे चारों ओर से घिरे हुए जैविक घटक, अजैविक घटक , ऊर्जा घटको की पारिस्थितिकी तंत्र होती है ।

वातावरण का परिभाषा इस ब्लॉग के लेखक द्वारा दी गई है

वातावरण या पर्यावरण उन सभी भौतिकी, रासायनिक और जैविको ( biological ) की सामूहिक इकाई होती है जो जीव और जीवधारीयों की पारिस्थितिकी को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है एवं इनके अनुरूप जीवधारीयों की जीवन ,जन्म और मृत्यु की चक्र चलती रहती है।

सरल शब्दों मे समझे तो हम यह कह सकते हैं की जो हम अपने चारो ओर देखते हैं या जिस पर हमारा जीवन और सभी निर्जीव या सजीवो का जीवन चक्र जिस पर निर्भर करता है वातावरण या पर्यावरण कहलाता है।

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाशास्त्रियों द्वारा वातावरण की अध्ययन कर निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया

एनास्टासी द्वारा परिभाषित – वातावरण वह प्रत्येक वस्तु , जो व्यक्ति की जीन्स के अतिरिक्त प्रत्येक वस्तु को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं ।

बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड द्वारा परिभाषित – व्यक्ति के वातावरण के अंतर्गत उन सभी उत्तेजनाओं का योग होता है जिन्हें वह जन्म से मृत्यु तक ग्रहण करता हैं।

पी. जिसबर्ट द्वारा परिभाषित – वातावरण वे सभी वस्तुएँ है जो किसी एक वस्तु को चारों ओर से घेरे हुए हैं तथा उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।

पी जिसबर्ट द्वारा परिभाषित –वातावरण उन सबको कहते हैं जो किसी वस्तु को चारों ओर से घेरे रहती है और उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालती है।

वातावरण का महत्व को समझे और इसे जीव के अनुकूल बनाए

वातावरण का महत्व जीवन की उत्पत्ति और विकास के लिए अति महत्वपूर्ण है । वातावरण के बिना जीवन की कल्पना हम नही कर सकते हैं। अगर विज्ञान की दृष्टिकोण से देखा जाए तो जीव की उत्पत्ति और विकास के लिए वातावरण ही जिम्मेदार है। अनुकूल वातावरण में ही जीवन की जन्म और उनकी अच्छी विकास संभव हो पाती है।

आज के मानव सभ्यता की वातावरण की बात की जाए तो आज के समय में हम अपने सभ्य समाज अनुसार वातावरण की दशा को बदल पाए हैं। जिसे मानवनिर्मित वातावरण भी कहा जाता है।जीवन पनपने के लिए प्रकृति रूप से हमे भौगोलिक वातावरण मिला है लेकिन आज के समय की भौगोलिक वातावरण के साथ साथ सभ्य मनुष्य ने मानवनिर्मित वातावरण जैसे सामाजिक वातावरण को भी बनाने में सफल हो पाई है। मनुष्य अपने आने वाली प्रजाति को एक अच्छी परिवेश देने के कारण मनुष्य प्रजाति की विकास दूसरे जीवों की तुलना में बहुत ही अधिक हो पाई है।

किसी जीव को सभ्य बनाने के लिए उनकी बौद्धिक विकास होना अति आवश्यक है एवं बौद्धिक विकास के लिए जीवो को सामाजिक वातावरण और शिक्षा जैसे वातावरण की आवश्यकता होती है।

वातावरण की महत्व को देखा जाए तो हम ये कह सकते हैं की भौगोलिक वातावरण का महत्व जीवन पनपने के लिए जरूरी है और जीव की सभ्य और बौद्धिक विकास के लिए सामाजिक और शिक्षा जैसे मानवनिर्मित वातावरण की आवश्यकता होती है।

वास्तव में वातावरण के दो ही प्रकार होती है

  1. भौगोलिक वातावरण / प्रकृति वातावरण
  2. मानवनिर्मित वातावरण
    • सामाजिक वातावरण
    • शिक्षा का वातावरण

भौगोलिक वातावरण क्या है? आइए समझने कि कोशिश करे

प्रकृति रूप से मिलने वाले वातावरण को ही भौगोलिक वातावरण कहा जाता है। भौगोलिक वातावरण हमे प्रकृति रूप से मिले हुए हैं। भौगोलिक वातावरण जीवन की उत्पत्ति के लिए अति आवश्यक है। भौगोलिक वातावरण के बिना जीवन की कल्पना हम नही कर सकते हैं।

मानवनिर्मित वातावरण क्या है? आइए इसे भी बारीकी से समझे

मानवनिर्मित वातावरण उसे कहा जाता है जो मनुष्य द्वारा बनाई गई वातावरण होती है जैसे मनुष्य के कुछ समुदाय द्वारा समाजिक वातावरण की निर्माण किया जाता है जिसमे उस विशेष समुदाय की संस्कृति, सामाजिक नियम और अपने जीवन यापन को अच्छी तरह से व्यतीत करने की प्रक्रियाओं का सम्मिलित रूप होती है।

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