ब्रूनर का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत-

जेरोम ब्रूनर ने अपने इस संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इसमें इन्होंने यह बताया कि एक बच्चा कैसे स्वयं अनुभव कर क्रिया करता है और सीखता है जिससे उसका मानसिक विकास होता है।

परिचय-

ब्रूनर का पूरा नाम ‘जेरोम सेमोर ब्रूनर’ था। इनका जन्म 1915 को अमेरिका के न्युयार्क शहर में हुआ था। इन्होने 1938 में ड्यूक यूनिवर्सिटी से बी.ए. किया और 1941 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी. की पढ़ाई पूरी की। यह एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत का प्रतिपादन किया। जिसको ‘जीन पियाजे’ के संज्ञानात्मक विकास के विकल्प के रूप में मन गया।

ब्रूनर का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत क्या है?

ब्रूनर के सिद्धांत को संरचनात्मक अधिगम सिद्धांत या अन्वेषण सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है। ब्रूनर का मानना था कि छोटे बच्चे जो सोचते हैं और जो समझते हैं वह जो अनुभव कर बुद्धि का या ज्ञान का जो उनके अंदर मानसिक रूप से विकास होता है ब्रूनर ने उसके तीन अवस्थाएं बताए हैं –

  • सक्रियता अवस्था- जन्म से 18 माह
  • दृश्य प्रतिमा अवस्था- 18 से 24 माह
  • सांकेतिक अवस्था- 7 वर्ष से उपर

सक्रियता अवस्था- इस अवस्था में एक छोटे बच्चे को जब भूख लगती है, तो वह रोने लगता है या हाथों को अपने मुंह के अंदर डालता है। क्योंकि बच्चा अनुभव कर रहा है कि उसे भूख लगी है इसीलिए वह ऐसी क्रियाएं करता है और इसी प्रकार बच्चे का धीरे-धीरे मानसिक विकास होता है. इसीलिए इस अवस्था को सक्रियता अवस्था कहा जाता है।

दृश्य प्रतिमा अवस्था- इस अवस्था में बच्चा जो अनुभव करता है वह उसे अपने मन में उसका एक आकार तैयार करता है ,प्रतिमा बना लेता है और अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करता है। इसमें बच्चा प्रत्यक्षीकरण के माध्यम से सीखता है।

सांकेतिक अवस्था- इस अवस्था में बच्चा अपनी अनुभूतियों को बोलकर, लिखकर व्यक्त करता है।इसमें बच्चा प्रत्यक्षीकरण के माध्यम से सीखता है। इसमें बच्चा भाषा, गणित एवं तर्क सीकर उनका उपयोग करता है। संकेतो के प्रयोग करने से बच्चों में संज्ञानात्मक कार्य क्षमता बढ़ जाती है। इसीलिए बच्चों को पढ़ाने या समझाने के लिए संकेतो का ज्यादा प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि संकेतो की मदद से जटिल अनुभव एवं विचारों को कथनों के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। इसे सांकेतिक अवस्था कहा जाता है।

ब्रूनर के सिद्धांत की विशेषताएँ-

ब्रूनर के संज्ञानात्मक विकास का सिद्दांत की बहुत सारी विशेषताएँ हैं जो निम्नलिखित हैं-

ब्रूनर ने अपने सिद्धांत के माध्यम से छात्रों के पूर्वज्ञान और नए विषयों से तालमेल रखने के लिए सही वातावरण तैयार करने पर ज्यदा महत्व देते हैं।

इस सिद्धांत के अनुसार बच्चे की व्यक्तिगत और सामाजिक गुणों का विकास होता है।

बच्चों को सिखाने के लिए जो विषय-वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है उसे इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए कि बच्चे को आसानी से समझ आ जाए।

ब्रूनर ने बच्चों के खोजकर सीखने पर भी बल दिया है।

ब्रूनर ने सीखने के लिए पुनर्बलन सिद्धांत को भी जरुरी माना है, इसमें पुरस्कार और दंड दोनों आते हैं।

ब्रूनर के सिद्धांत का शिक्षा में योगदान-

ब्रूनर के अनुसार छात्र के सामने ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करनी चाहिए, जिसे वह खुद से करना चाहे।

ब्रूनर का मानना था कि बच्चे स्वयं करके जो सीखते हैं. वह खोजपूर्ण शिक्षा कहलाता है।

ब्रूनर के सिद्धांत के अनुसार छात्र के पूर्वज्ञान को अनुभव के साथ जोडकर जो सिखने को मिलता है, वह छात्र को हमेशा के लिए याद रहता है।

ब्रूनर के इस सिद्धांत के आधार पर छात्रों की याद रखने की शक्ति और कल्पना करने की शक्ति का विकास होता है। इससे छात्रों में कुछ नया करने का, ‘रचनात्मकता कौशल’ का विकास होता है जो कि आगे जीवन में उसके लिए बहुत ही उपयोगी साबित होगी।

ब्रूनर का सिद्धांत छात्रों को स्वतंत्र रूप से अध्ययन करने, खोज करने, और समस्या का समाधान करने पर बल देता है।

संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत के अन्य नाम –

  • संरचनात्मक सिद्धान्त
  • बौधिक विकास का सिद्धान्त
  • निर्देश अवस्था सिद्धान्त
  • अन्वेषण सिद्धान्त
  • रचनात्मक सिद्धान्त / क्रियात्मक सिद्धान्त

जीन पियाजे एवं ब्रूनर का सिद्धांत में क्या-क्या समानताएं हैं ?

वैसे तो जीन पियाजे और ब्रूनर दोनों ही संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत से संबंधित हैं, पर इसमें हम समझेंगे की इन दोनों के दिए गए सिद्धांतों में क्या समानताएं हैं और क्या असमानताएं है।

समानताएं –

बच्चा पूर्ववर्ती ज्ञान के आधार पर सीखना है।

बच्चों में स्वाभाविक रूप से भाषा विषय में जिज्ञासा होती है।

बच्चों में संज्ञानात्मक संरचनाओं समय के साथ-साथ विकसित होती है।

बच्चे अधिगम प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।

बच्चों के संज्ञानात्मक विकास में संकेतों के या चिन्हों के अभी ग्रहण तक चलता है।

असमानताएं –

पियाजे और ब्रूनर दोनों के इस संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में जो असमानता है या अंतर है वह निम्नलिखित है –

निष्कर्ष –

ब्रूनर का सिद्धांत छात्रों को स्वयं क्रिया कर उसका हल निकालने पर बल देते हैं, क्योंकि उनके अनुसार बच्चे स्वयं ही अनुभव कर अपने ज्ञान का निर्माण कर सकते हैं। अभी के समय में भी बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ ज्यादा ध्यान उनके एक्स्ट्रा ऐक्टिवीटी पर दिया जाता है।

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