बुद्धि क्या है? बुद्धि का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं बुद्धि के सिद्धांत

बुद्धि क्या है ?

बुद्धि वह मानसिक योग्यता है जो हमे पर्यावरण के साथ समायोजन करना, तेजी से सीखने की क्षमता, स्मरण शक्ति एवं अमूर्त तर्क करने की क्षमता प्रदान करता है। उसे बुद्धि कहते हैं।

बुद्धि का अर्थ –

बुद्धि को अंग्रेजी में ‘इंटेलिजेंस’ कहते हैं। यह लैटिन भाषा के Inter और Legere दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है समझना’ ।

बुद्धि की परिभाषा-

थार्नडाइक के अनुसार – “उत्तम क्रिया करने तथा नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता को बुद्धि कहते हैं।”

स्पीयरमैन के अनुसार – “बुद्धि सामवर्धिक चिंतन है।”

वुडवर्थ के अनुसार – “बुद्धि कार्य करने करने की एक विधि है।”

क्रूज के अनुसार – “बुद्धि नई व विभिन्न परिस्थितियों में अच्छी प्रकार से समायोजन की योग्यता है।”

बंकिधम के अनुसार – “बुद्धि सीखने की योग्यता है।”

वुडरे के अनुसार – “बुद्धि ग्रहण करने की क्षमता है।”

वेशलर के अनुसार – बुद्धि एक सार्वजनिक क्षमता है जिसके सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रिया करता है, चिंतन करता है और वातावरण के साथ प्रभावी रूप से समायोजन करता है।

टरमैन के अनुसार – एक व्यक्ति उतना ही अनुपात में बुद्धिमान होता है, जितना वह अमूर्त चिंतन की क्षमता रखता है।

बुद्धि की विशेषताएं-

बुद्धि की सहायता से व्यक्ति को किसी भी प्रकार की समस्या का हल निकालने में मदद करता है। बुद्धि की सहायता से व्यक्ति वातावरणके साथ बहुत ही अच्छे से समायोजन करता है। बच्चे पर उसके आस -पास के अच्छे वातावरण के कारण बच्चे का बुद्धि विकास अच्छा होता है।

बुद्धि परीक्षण क्या है? एवं इसको सबसे पहले किसने विकसित किया?

यह एक प्रकार का परीक्षण है जो बच्चों के बुद्धि का स्तर जांचने और यह पता लगाने के लिए की उसमें कितनी और कौन- कौन सी मानसिक योग्यताएं हैं।

“अल्फ्रेड बिने” और इनके साथी “थियोडोर साइमन” दोनों ने मिलकर (1904) में पहला बुद्धि परीक्षण किया। जिसे (बिने साइमन स्केल) भी कहा जाता है।

“लुईस टर्मन” जो कि एक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक थे, इन्होंने (1916) में इसका फिर से परीक्षण किया या कह सकते हैं कि रिवाइज किया। जिसके बाद से इस परीक्षण को (स्टेनफोर्ड-बिने) के नाम से भी जाना जाता है।

बुद्धि लब्धि (IQ)क्या है? बुद्धि लब्धि के सूत्र एवं स्तर को समझें –

बुद्धि लब्धि प्रमाणित रूप से की गई परीक्षणों से प्राप्त एक गणना है। जिससे बच्चे की मानसिक आयु एवं वास्तविक आयु की मदद से उसके बुद्धि का आकलन किया जाता है।

बुद्धि लब्धि का सूत्र (1912) में जर्मन मनौवैज्ञानिक “विलियम स्टर्नबर्ग” ने दिया था। फिर (1916) में “टर्मन” ने इस सूत्र में 100 लगाकर इसको संशोधित किया

बुद्धि लब्धि के सूत्र-

IQ=M.A/C.A×100

IQ – Intelligence Quotient (बुद्धि लब्धि)

M.A – Mental Age ( मानसिक आयु)

C.A – Chronological Age ( वास्तविक आयु)

बुद्धि लब्धि के स्तर-

मानसिक आयु

वास्तविक आयु

मानसिक आयु – मानसिक आयु का सिद्धांत (1908) में ‘अल्फ्रेड बिने’ के द्वारा दिया गया था। किसी बच्चे का बौद्धिक विकास उसके समान आयु के बच्चे की तुलना में कितना है, यह मापन बच्चे के बुद्धि मापने के लिए किया जाता है। मानलीजिए एक बच्चे की वास्तविक आयु 10 वर्ष है और वह उसी आयु के बने बुद्धि परीक्षण में सफल हो जाता है,तो उसकी मानसिक आयु भी 10 वर्ष की होगी। यह बच्चा everage कहलाएगा।और अगर 10 वर्ष का बच्चा 12 वर्ष के बने बुद्धि परीक्षण में सफल होता है तो उस बच्चे का मानसिक आयु 12 वर्ष का होगा। यह बच्चा super genius कहलाएगा। इसीप्रकार अगर एक बच्चे की आयु 10 वर्ष है और वह अपने आयु के बने बुद्धि परीक्षण में सफल न होकर 8 वर्ष के बने बुद्धि परीक्षण में ही सफल होता है तो उस बच्चे की वास्तविक आयु 10 वर्ष होने के बावजूद उसकी मानसिक आयु 8 वर्ष की होगी।

वास्तविक आयु – किसी बच्चे का उम्र वास्तविक में जितना होना चाहिए। उसे उसका वास्तविक उम्र कहते हैं।

बुद्धि का वर्गीकरण

बुद्धि लब्धि के स्तर टर्मन के अनुसार –

बुद्धि का सिद्धांत

बुद्धि का एक- तत्व या एक करकीय सिद्धांत

बुद्धि का द्विकारक सिद्धांत

बुद्धि का त्रिकारक सिद्धांत

बुद्धि का बहु कारक सिद्धांत

बुद्धि का समूह कारक सिद्धांत

बुद्धि का प्रतिदर्श या प्रतिचयन सिद्धांत

बुद्धि का क्रमिक महत्व सिद्धांत

बुद्धि का त्रिआयम सिद्धांत

बुद्धि का एक- तत्व या एक करकीय सिद्धांत – इस सिद्धांत का प्रतिपादन ‘अल्फ्रेड बिने’ ने किया था।इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि को एक कारक के रूप में माना जाता है। यही एक कारक व्यक्ति के संपूर्ण मानसिक क्रियाओं को प्रभावित करती है।

इस सिद्धांत के अनुसार अगर व्यक्ति किसी एक कार्य में निपूर्ण है तो वह दूसरे कार्यों में निपूर्ण होगा। इसीलिए वह बुद्धि ही है जो व्यक्ति को पूरी तरह से कंट्रोल करता है।

बुद्धि का द्विकारक सिद्धांत – इस सिद्धांत को (1904) में ‘स्पीयरमैन’ ने दिया था।इनके अनुसार बुद्धि का निर्माण दो कारकों से मिलकर हुआ है-

सामान्य कारक (G factor)

विशिष्ट कारक (S factor)

सामान्य कारक – स्पीयरमैन के अनुसार सामान्य कार्य करने की योग्यता व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त होती है।

विशिष्ट कारक – यह अलग – अलग योग्यताओं का समूह होता है। विशिष्ट कारक को अनुभव कर, अध्ययन कर एवं ट्रेनिंग करके बढ़ाया जा सकता है।

अतः यह दो कारकों से मिलकर जिस बुद्धि का निर्माण हुआ है, मानसिक कार्य करने की योग्यता प्रदान करते हैं एवं इसमें ‘सामान्य कारक’ सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।

बुद्धि का त्रिकारक सिद्धांत – स्पीयरमैन ने अपने बुद्धि का द्विकारक सिद्धांत में एक नया कारक जोड़कर बुद्धि के त्रिकाराक सिद्धांत का प्रतिपादन किया। जिसे उन्होंने ‘समूह कारक’ कहा जो ‘समान्य कारक’ और विशिष्ट कारक का मिश्रण है।

बुद्धि का बहुकारक सिद्धांत – इस सिद्धांत का प्रतिपादन थार्नडाइक ने किया। इस सिद्धांत के अनुसार थार्नडाइक का मानना था कि बुद्धि में सामान्य योग्यता जैसा कोई तत्व नहीं होता, बल्कि बुद्धि का निर्माण तो बहुत सारे छोटे-छोटे कारकों के मिलने से होता है।

थार्नडाइक के अनुसार अलग-अलग मानसिक प्रक्रियाओं के बीच किसी संयोजन ‘G’ कारक के कारण नहीं, बल्कि मानसिक प्रक्रियाओं के में उपस्थित ‘सामान्य कारकों’ से हुआ है।

बुद्धि का समूह कारक सिद्धांत – इस सिद्धांत का प्रतिपादन ‘लुईस थर्स्टन’ ने 1937 में किया। इनका मानना था कि बुद्धि न तो सामान्य कारक द्वारा निर्धारित होती है और न ही विशिष्ट कारक द्वारा। इसमें कुछ मानसिक क्षमताओं का एक सामान्य प्रधान कारक है जो सभी मानसिक योग्यताओं को एक सूत्र में बांधे रखता है तथा एक जैसी मानसिक क्रियाओं को दूसरी क्रियाओं से अलग रखता है।

सभी मानसिक क्रियाएं जिनका सामान्य कारक होता है, वह सभी मिलकर एक समूह बनाते हैं। जिसको प्राथमिक कारक कहते हैं। थर्स्टन ने समूह कारक सिद्धांत के 7 प्राथमिक कारक बताएं हैं जो निम्नलिखित हैं –

इन योग्यताओं को मापने के लिए थर्स्टन ने PMA (praimary Mental Ability Test) ka प्रयोग किया था।

  • शाब्दिक योग्यता
  • आंकिक योग्यता
  • शब्द प्रवाह योग्यता
  • स्थानिक योग्यता
  • तर्क क्षमता
  • स्मृति क्षमता
  • प्रत्यक्षीकरण योग्यता

शाब्दिक योग्यता – इसमें शब्दों,वाक्यों एवं भाषा को समझने और उनका स्पष्टीकरण करने की योग्यता को शाब्दिक योग्यता है।

आंकिक योग्यता – तेजी से सांख्यिक गणना करना एवं अंकन करने की योग्यता को आंकिक योग्यता कहा जाता है।

शब्द प्रवाह योग्यता – शब्दों को तेजी से उपयोग करने की क्षमता को शब्द प्रवाह योग्यता कहा जाता है।

स्थानिक योग्यता – स्थान में वस्तुओं का परिचालन करने की योग्यता को स्थानिक योग्यता कहा जाता है।

तर्क योग्यता – किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान के लिए तर्क – वितर्क या सोच – विचार करने को तर्क योग्यता कहा जाता है।

स्मृति क्षमता – बहुत दिनों तक चीजों को याद रखने की क्षमता को स्मृति क्षमता कहा जाता है।

प्रत्यक्षीकरण योग्यता – किसी वस्तु को तेजी से प्रत्यक्षीकरण करने की क्षमता को प्रत्यक्षीकरण योग्यता कहा जाता है।

बुद्धि का प्रतिदर्श या प्रतिचयन सिद्धांत – इस सिद्धांत का प्रतिपादन थॉमसन ने किया था। इनके अनुसार बुद्धि कई स्वतंत्र तत्वों से बना है। व्यक्ति किसी भी कार्य को करने के लिए वह अपनी पूरी मानसिक योग्यताओं में से कुछ प्रतिदार्श के रूप में चुनता है। इसी को बुद्धि का प्रतिदर्श या प्रतिचयन सिद्धांत कहा जाता है।

बुद्धि का क्रमिक महत्व सिद्धांत – इस सिद्धांत के प्रवर्तक बर्ट एवं वर्नन थे। इस सिद्धांत में बुद्धि की तुलना एक पिरामिड से की गई है। जिसमें उन्होंने मानसिक योग्यताओं को दो स्तर में विभक्त किया है –

  • सामान्य मानसिक योग्यता
  • विशिष्ट मानसिक योग्यता

बर्ट एवं वर्नन ने अपनी सिद्धांत में बुद्धि की तुलना जिस पिरामिड से की है उसमें उन्होंने सामान्य मानसिक योग्यता (G) को सबसे ऊपर रखा है, और योग्यताओं को दो भागों में बांटा है। पहले भाग में क्रियात्मक जिसको (k.m) नाम दिया और दूसरे भाग में शाब्दिक जिसको (v.ed) नाम दिया। एवं सबसे नीचे में इन्होंने विशिष्ट मानसिक योग्यता को रखा।

बुद्धि का त्रिआयामी सिद्धांत – इस सिद्धांत का प्रतिपादन गिलफोर्ड ने 1967 में किया। यह एक बहुकारक सिद्धांत है जिसके तीन प्रकार हैं –

सांक्रिया – मूल्यांकन, स्मृति धारण, स्मृति अभिलेखन, अभिसारी चिंतन, संज्ञान।

पदार्थ या विषयवस्तु – दृष्टि, श्रवण, शाब्दिक, व्यावहारिक, सांकेतिक।

उत्पाद – इकाई, वर्ग, आशय, पद्धति, संबंध, रूपांतरण।

Leave a Comment