नारीवाद क्या है ?

नारीवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसमें महिला-पुरूष दोनों को समानता का अधिकार दिया गया है। पर सदियों से ही हमारे देश में पितृसत्तात्मक समाज में केवल पुरुषों को ही घर का मुखिया माना जाता है। वहीं महिलाओं को केवल घर के काम – काज़ करने और बच्चे पैदा करने, बच्चों को पाल – पोषकर बड़ा करना। इसी तक महिलाओं को सीमित रखा जाता था। हमेशा से ही महिलाओं के साथ भेद – भाव एवं अन्याय होता आ रहा है।

नरीवाद के प्रकार –

नारीवाद के 6 प्रकार हैं जो निम्नलिखित हैं –

  • उदारवादी नारीवाद
  • समाजवादी नारीवाद या मार्क्सवादी नारीवाद
  • उत्तर आधुनिक नारीवाद
  • उग्रवादी नारीवाद
  • सांस्कृतिक नारीवाद
  • पर्यावरणीय नारीवाद

उदारवादी नारीवाद – उदारवादी नारीवाद का मुख्य विचार यह है कि सभी मनुष्य एक समान होते हैं, चाहे वो पुरुष हो या महिला दोनों ही समान हैं और इसमें पुरुषों एवं महिलाओं की समानता का अधिकार पर जोर दिया गया है।मुख्य रूप से जो महिलाओं का लीगल अधिकार है उस पर जोर दिया गया है, महिलाओं को भी पुरुषों के समान शिक्षा मिलना चाहिए। घर हो या फिर समाज हमेशा से ही महिलाओं को केवल घर के काम- काज करने के लिए ही समझा जाता था। उनकी अपनी कोई पहचान नहीं थी, समाज में वह सिर्फ एक अच्छी मां, पत्नी और बहन के रूप में ही जानी जाती थी।यहां तक की महिलाओं को अपने बारे में किसी भी प्रकार का फैसला लेने की इजाज़त तक नहीं थी।

“मेरी वोल्स्टोन क्राफ्ट” ने 1792 में अपनी पुस्तक “विंडिकेशन ऑफ द राईट्स ऑफ वूमेन” में महिलाओं के अधिकारों के प्रति मांग की। मेरी वोल्सटोन क्राफ्ट ने महिलाओं के लिए समानता का अधिकार एवं नागरिकता का अधिकार (मताधिकार)के लिए मांग की। उदारवादी नारीवाद का मुख्य मुद्दा है मताधिकार, शिक्षा का अधिकार समानता का अधिकार, समान वेतन एवं घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों का है। ‘न्यूजीलैंड’ विश्व का पहला वह देश है जिसनें (1894) में महिलाओं को मताधिकार प्रदान किया।

1869 में जॉन स्टूअर्ट मिल ने अपनी पुस्तक “सब्जेक्शन ऑफ वूमेन” में महिलाओं की शिक्षा, संपत्ति का अधिकार एवं नागरिकता के लिए जोर दिया है।

1963 में “बेट्टी फ्रीडन” जिन्हें महिला मुक्त की जन्मदाता कहा जाता है एवं इनकी पुस्तक ‘द फेमिनन मिस्टीक’ में महिलाओं को अपने से अपने लिए निर्णय लेने का पर जोर दिया गया है।

मार्क्सवादी नारीवाद या समाजवादी नारीवाद – मार्क्सवादी या समाजवादी नारीवाद में महिलाओं के साथ होने वाले सामाजिक भेद-भाव को रोकना है। महिलाओं को समाज में समानता का अधिकार दिलाना, उनको सम्मान दिलाना एवं उनको सशक्त बनाना है। मार्क्सवाद और समाजवादी नारीवाद की इस व्याख्या से पहले लोग महिलाओं के कामों को उनका कर्तव्य मानते थे, इसीलिए उनको महत्व नहीं दिया जाता था। जबकि एक महिला अपना पूरा जीवन अपने परिवार के देख-रेख में लगा देती है।

“जुलियर मिशेल”, “गर्दालरनर” जैसे नारीवादीयों का यह मानना था कि महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक अधिकार मिलनी चाहिए। इसमें नारीवादियों ने यह मांग रखी की महिला अपने घर के साथ-साथ बाहर भी काम करना चाहती है या नहीं यह फैसला उसका अपना होना चाहिए न की किसी और का थोपा गया।

उत्तर आधुनिक नारीवाद – उत्तर आधुनिक नारीवाद को “फ्रेंच नारीवाद” के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर आधुनिक नारीवादीयों का मानना है कि जो कुछ भी दुनिया में हो रहा है वह प्राकृतिक नही हैं। सदियों से ही जितने भी हमारे इतिहास हो या कहानियां हो सभी पुरुषों के अनुरूप ही है। जिसमें पुरुषों को प्रधान ही बताया गया है। प्राचीन काल के लेखकों से लेकर आधुनिक काल तक के लेखकों ने भी महिला एवं पुरुषों के बीच अंतर किया, जिसे पुरुषों ने ही बनाया है।

“हैलिनी सिजू” जो की एक उपन्यासकार हैं। वह कहती है कि जितने भी लेख हैं वह पुरुषों के सोच पर केंद्रित है। जो हमेशा से ही स्वयं को प्रमुख दर्शाने की कोशिश करते हैं। वहीं महिलाओं को पुरुषों के तुलना हमेशा दूसरे स्थान पर ही रखा जाता है और यह दर्शाया जाता है कि महिलाएं हमेशा से ही पुरुषों पर आश्रित हैं।

उग्रवादी नारीवाद – उग्रवादी नारीवाद का आरंभ 1960 के अंतिम दशक में अमेरिका से हुआ। वहां से यह इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया पहुंच उग्रवादी नारीवादियों ने महिलाओं को दबाव एवं शोषण से निजात पाने के लिए अलग-अलग तरह के मुद्दों पर जागरूकता फैलाया एवं राजनीतिक उपाय बताए। उनका यह दृष्टिकोण ‘चेतना की जागृति’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ इन सभी का असली कारण पितृसत्ता है। उग्रवादी नारीवाद में महिलाओं की समस्याओं को पूरे समाज के समक्ष रखा जाता है एवं इसमें मनोवैज्ञानिक रूप से महिलाओं को प्रोत्साहन देने का कार्य करता है जिसमें महिलाएं सिर्फ घर में ही नहीं बल्कि बाहर भी खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।

सांस्कृतिक नारीवाद – सांस्कृतिक नारीवाद महिलाओं के गुण एवं अनुभव पर जोर देता है। सांस्कृतिक नारीवाद में पुरुष एवं महिलाओं में गुणों को लेकर यह स्पष्ट करता है कि पुरुषों के तुलना महिलाओं में एकता का भाव अधिक होता है।

पर्यावरणीय नारीवाद – आज के समय में सबसे ज्यादा जो मुद्दे होते हैं वह पर्यावरण और महिलाओं की होती है। जितने भी दार्शनिक जो नारीवादी विचारधारा के हैं उनका मानना है की प्रकृति और महिलाओं में काफी समानता है क्योंकि जिस प्रकार महिलाओं का शोषण किया जाता है उनको उत्पीड़न सहना पड़ता है। उन्हें कुछ भी नहीं समझा जाता है उनके साथ असमानता का व्यवहार किया जाता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य प्रकृति के साथ भी वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं दोनों ही अपने-अपने स्थान पर ‘शोषित’ हो रहे हैं। इसीलिए 1970 के दशक में दार्शनिकों ने नारीवादी की विचारधारा में एक नई परिकल्पना को जोड़कर उसे ‘इको फेमिनिजम’ का नाम दिया जिसे पर्यावरणीय नारीवाद भी कहा जाता है।

भारत में नारीवाद की शुरुआत –

हमारे समाज में भी शुरू से ही महिलाओं को हमेशा से दूसरा दर्जा दिया गया है। हमेशा से ही उन्हें पुरुषों के अधीन ही रखा है। यहां तक कि उन्हें अपने मूलभूत अधिकारों से भी वंचित रखा गया है, जबकि महिलाएं इस देश की आधी आबादी हैं। भारत में नारीवादी आंदोलन को तीन चरणों में बांटा गया है –

प्रथम चरण (1850 -1915)

द्वितीय चरण (1915 -1947)

तृतीय चरण (1947 से अब तक)

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