क्रियात्मक अनुसंधान क्या है? अर्थ, प्रकार और वर्तमान समय में इसके उद्देश्य को विस्तार से समझें।

क्रियात्मक अनुसंधान वह होता है जो किसी भी विद्यालय की दैनिक जीवन की आने वाली समस्याओं के बारे में है, चाहे वह बच्चों के विषय संबंधी कठिनाई हो या फिर वह विद्यालय प्रबंधन संबंधी हो। इन सभी का जो अनुसंधान किया जाता है उसे क्रियात्मक अनुसंधान कहते हैं।

क्रियात्मक अनुसंधान शब्द की उत्पत्ति सबसे पहले ‘कर्ट लेविन’ ने की थी। कर्ट लेविन ने “क्षेत्र सिद्धांत”का प्रतिपादन किया और वह गेस्टॉल्टवाद से भी संबंधित थे। इन्होंने अपना प्रयोग शिक्षा पर नहीं किया बल्कि समाजिक जीवन पर, फैक्ट्री के मजदूरों पर किया था। कर्ट लेविन ने सबसे पहले (1934) में ‘ क्रियात्मक अनुसंधान’ का पता लगाया।

“क्रियात्मक अनुसंधान” को सबसे पहले ‘ स्टीफन एम.कोरे’ ने (1951) में इसका प्रयोग शिक्षा के लिए किया।

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ-

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ स्कूलों में काम करने वाले व्यक्तियों और कर्मचारियों द्वारा स्कूल की समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन कर स्कूल की गतिविधियों में सुधार लाना।

क्रियात्मक अनुसंधान के प्रकार –

क्रियात्मक अनुसंधान के मुख्य रूप से तीन प्रकार हैं –

वर्णात्मक क्रियात्मक अनुसंधान

निदानात्मक क्रियात्मक अनुसंधान

प्रायोगिक क्रियात्मक अनुसंधान

वर्णात्मक क्रियात्मक अनुसंधान – यह अनुसंधान किसी क्षेत्र मे वस्तु स्थिति खोजने के लिए किया जाता है।

निदानात्मक क्रियात्मक अनुसंधान – यह अनुसंधान किसी भी प्रक्रिया में कमियों को पहचान कर उनका निदान करने के लिए होता है, जैसे- जब बच्चे को कोई टॉपिक समझ नहीं आई तो उस बच्चे का समस्या को दूर करना निदानात्म क्रियात्मक अनुसंधान कहलाता है।

प्रायोगिक क्रियात्मक अनुसंधान – यह अनुसंधान मे नए विचारों का प्रयोग किया जाता है और करने के बाद उसके परिणाम का प्रभाव दूसरों पर देखा जाता है।

क्रियात्मक अनुसंधान की परिभाषाएं-

शिक्षाशास्त्रियों ने अपने अनुसार क्रियात्मक अनुसंधान के कुछ परिभाषाएं दी हैं जो निम्नलिखित हैं –

मुनरो के अनुसार – “क्रियात्मक अनुसंधान समस्याओं के अध्ययन की एक विधि है, जिसमें दिए गए सुझाव आंशिक या तथ्यों पर आधारित है।”

मौले के अनुसार – “शिक्षक के समक्ष उपस्थित होने वाली समस्याओं में से अनेक तत्काल ही समाधान चाहती है। मौके पर किए जाने ऐसे अनुसंधान जिसका उद्देश्य तात्कालिक समस्या का समाधान होता है।”

स्टीफन एम.कोरे के अनुसार – “शिक्षा में क्रिया अनुसंधान कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान है, ताकि वह अपने कार्यों में सुधार कर सकें।”

मेक ग्रेथरे के अनुसार – “क्रियात्मक अनुसंधान व्यवस्थित खोज की क्रिया है, जिसका उद्देश्य व्यक्ति समूह की क्रियाओं में रचनात्मक सुधार तथा विकास लाना है।”

कार्टर वी गुड के अनुसार – “क्रियात्मक अनुसंधान शिक्षकों, निरीक्षकों और प्रशासकों द्वारा अपने निर्णयों और कार्यों की गुणात्मक उन्नति के लिए किया जाने वाला अनुसंधान है।”

क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व क्या है?

क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व विद्यालय के प्रशासक एवं निरीक्षक के लिए होता है, क्योंकि जो निरीक्षक होते हैं वह विद्यालय का निरीक्षण करते हैं कि विद्यालय में किन – किन सुधारों की आवश्यकता है, नियमित रूप से काम हो रहें हैं कि नहीं। शिक्षक यह देखते हैं कि उन्होंने जो बच्चों को पढ़ाया हैं वह कितना प्रभावी रहा है। बच्चों को किस नई शिक्षण विधियों की आवश्यकता है और किस विषय में सुधार करने की आवश्यकता है। यह सभी को तार्किक रूप से सोच – समझकर इन समस्याओं का समाधान करने के लिए क्रियात्मक अनुसंधान किया जाता है।

क्रियात्मक अनुसंधान के उद्देश्य-

विद्यालय की कार्य प्रणाली में सुधार लाना।

कक्षागत समस्याओं के समाधान करने की योग्यता शिक्षक तथा छात्रों में विकसित करना।

छात्रों तथा शिक्षकों में प्रजातंत्र के वास्तविक गुणों का विकास करना।

विद्यालय के कार्यकर्ताओं में कार्य कौशल का विकास करना।

विद्यालय की कार्यप्रणाली को प्रभावशाली बनाना।

विद्यालय के प्रधानाचार्य, प्रबंधक, कार्यकर्ताओं शिक्षकों एवं निरीक्षकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना।

छात्रों के निष्पत्ति स्तर में वृद्धि करना।

क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान –

समस्या का समाधान।

कार्य के लिए प्रस्तावों पर विचार-विमर्श।

उपकल्पना का निर्माण एवं योजना का चयन।

तथ्य संग्रह करने की विधियों का निर्माण।

योजना का कार्यान्वयन व प्रमाण का संकलन।

तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष।

दूसरों के परिणामों की सूचना।

समस्या का समाधान- इसमें विद्यालय में आने वाली किसी भी प्रकार के समस्या को भली- भांति समझकर विद्यालय के प्रधानाध्यापक एवं शिक्षक उस समस्या के बारे में अपने विचार व्यक्त करेंगे, तो ही वह वास्तविक समस्या को समझकर अपने कार्यों में आगे सुधार कर पाएंगे।

कार्य के लिए प्रस्तावों पर विचार- विमर्श- सबसे पहले समस्या को अच्छे से समझकर, विचारकर उसका समाधान करने के लिए प्रधानाध्यापक, शिक्षक आदि सब अपने- अपने सुझाव देते हैं। इसके बाद आपस मे सभी मिलकर किसी भी कार्य के लिए अच्छे से विचार – विमर्श करते हैं।

योजना का चयन एवं उपकल्पना का निर्माण – किसी भी प्रकार के समस्या का समाधान करने के लिए सबसे पहले अच्छे से विचार- विमर्श करने के बाद ही किसी योजना का चयन और उपकल्पना का निर्माण करते हैं।इसमें विचार- विमर्श करने वाले सभी लोगों का समान रूप से रिस्पांसिबिलिटी होता है।

तथ्य संग्रह करने की विधियों का निर्माण – क्रियात्मक अनुसंधान के लिए योजना का चयन करने के बाद शिक्षक सभी तथ्यों को संग्रह करते हैं।

योजना का कार्यान्वयन व प्रमाण का संकलन – शिक्षकों ने जो भी तथ्यों को संग्रह कर उस पर अच्छे से सोच विचार करते हैं और उस समस्या का समाधान निकालकर उस पर अमल करते हैं।

तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष – इसमें सभी प्रकार के तथ्यों का अच्छे से विश्लेषण कर उसका निष्कर्ष निकलते हैं, कि समस्या क्या है और जो समाधान निकाला वह काम किया की नहीं।

दूसरों के परिणामों की सूचना – इसमें शिक्षक एक रिपोर्ट तैयार करते हैं। जिसको आगे कभी -भी किसी भी प्रकार की समस्या के साथ रिफ्लेक्ट कर सकते हैं।

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