अनुवाद किसे कहते हैं? अनुवाद का अर्थ, परिभाषा, स्वरूप एवं सीमाएं –

अनुवाद एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक भाषा को दूसरी भाषा में व्यक्त किया जाता है। जब किसी एक भाषा में लिखी या कहीं गई बात को दूसरी भाषा में व्यक्त किया जाता है उसे अनुवाद कहते हैं। यह एक भाषिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य संप्रेषण या विचारों का आदान-प्रदान करना है।

अनुवाद का अर्थ –

डॉ. भोलानाथ तिवारी का मानना है कि अनुवाद शब्द का संबंध ‘वद’ धातु से है जिसका अर्थ होता है बोलना और कहना। वद धातु में ‘ध’ प्रत्यय लगने से ‘वाद’ शब्द बनता है और फिर उसमें ‘अनु’ शब्द जोड़ने से अनुवाद शब्द बनता है। इस प्रकार अनुवाद का मूल अर्थ पुनः कथन या किसी के बोलने के बाद कहना होता है।

इसी प्रकार अनुवाद शब्द को अंग्रेजी में ट्रांसलेशन कहा जाता है Translation शब्द “लैटिन” भाषा के दो शब्द Trans और Lation को जोड़कर बना है। जिसका अर्थ होता है ‘पार ले जाना ‘ । जैसे कि एक भाषा में बोली गई बात को दूसरे भाषा में ले जाना या उसका अनुवाद करना।

अनुवाद की परिभाषाएं –

विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने अनुसार अनुवाद की परिभाषा दी है जो निम्नलिखित हैं –

देवेंद्र नाथ शर्मा – “विचारों को एक भाषा से दूसरी भाषा में रूपांतरित करना अनुवाद है।”

डॉ.दंगल झाल्टे के अनुसार –“स्रोत भाषा के मूल पाठ के अर्थ को लक्ष्य भाषा के परिनिष्ठित पाठ के रूप में रूपांतरण करना अनुवाद है।”

डॉ.भोलानाथ तिवारी के अनुसार – “एक भाषा में व्यक्त विचारों को यथासंभव सामान और सहज अभिव्यक्ति द्वारा भाषा में व्यक्त करने का प्रयास अनुवाद है।”

पाश्चात्य विद्वान सैमुअल जॉनसन के अनुसार – “मूल भाषा की सामग्री के भावों की रक्षा करते हुए उसे दूसरी भाषा में बदल देना अनुवाद है।”

पाश्चात्य विद्वान ए.एच.स्मिथ के अनुसार – “अर्थ को बनाए रखते हुए अन्य भाषा में अंतरण करना ही अनुवाद है।”

न्यूमार्क के अनुसार – “अनुवाद एक ऐसा है सिर्फ है जिसमें एक भाषा में व्यक्त संदेश के स्थान पर दूसरी भाषा के उसी संदेश को प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है।”

नाईडा के अनुसार – “अनुवाद का तात्पर्य है स्रोत भाषा में व्यक्त संदेश के लिए लक्ष्य भाषा में निकटतम सहज संतुलित संदेश को प्रस्तुत करना। यह समतुल्यता पहले तो अर्थ के स्तर पर होती है फिर शैली के स्तर पर।”

कैटफोर्ड के अनुसार – “इनका मनना था कि एक भाषा की पाठ्य- सामग्री को दूसरी भाषा की समानार्थक पाठ्य- सामग्री में प्रतिस्थापित करना ही अनुवाद है।

अनुवाद के स्वरूप –

अनुवाद के स्वरूप के संदर्भ में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान अनुवाद की प्रकृति को ही अनुवाद का स्वरूप मानते हैं और कुछ विद्वान अनुवाद के प्रकार को ही उसका स्वरूप मानते हैं। पर डॉ. रविन्द्र श्रीवास्तव ने अनुवाद के स्वरूप को दो वर्गों में बांटा है – 1) व्यापक स्वरूप। 2) सीमित स्वरूप।

1) व्यापक स्वरूप – व्यापक स्वरूप में अनुवाद को ‘प्रतीक’ के सिद्धांत के रूप में देखा गया है। इसीलिए व्यापक स्वरूप को “प्रतीकांतरण” भी कहा जाता है। अनुवाद के अंतर्गत एक प्रतीक व्यवस्था में कही गई बात को बिना अर्थ परिवर्तन किए दूसरी प्रतीक व्यवस्था में व्यक्त किया जाता है, क्योंकि अनुवाद अर्थ या कथ्य का प्रतीकानतरण दो प्रतीक व्यवस्थाओं के बीच होने वाला अंतरण व्यापार है।

) अंतःभाषिक अनुवाद – अन्तःभाषिक शब्द का अर्थ है अनुवाद कि वह प्रक्रिया जो एक ही भाषा के अंतर्गत निर्मित होती है। जिसमें अनुवादक उसी भाषा में एक ही बात को कुछ अलग तरीके से व्यक्त करता है। जैसे – हिंदी और उर्दू भाषा अलग नहीं है बल्कि एक भाषा के दो अन्य रूप हैं।जिसकी लिपि अलग – अलग है। मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा उर्दू में रचित ” बाजारे हुस्न” का हिंदी में अनुवाद किया गया है। इसीलिए लिपि भिन्न हो जाने से भाषा भिन्न नहीं हो जाती क्योंकि जब भाषा को भिन्न लिपि में लिखा जाता है तब भले ही लिपि अलग होती है, परंतु भाषा वही होती है। इसे अंतः भाषिक अनुवाद कहते हैं।

ख) अंतर भाषिक अनुवाद – अंतर भाषिक अनुवाद में दो अलग – अलग प्रतीक व्यवस्थाओं के बीच जो अनुवाद किया जाता है वह “अंतर भाषिक अनुवाद” या “भाषांतर” कहलाता है।

ग) अंतर प्रतीकात्मक अनुवाद – “अंतर प्रतीकात्मक अनुवाद” में किसी कहानी को फिल्म के रूप में अंतरित करना, अंतर प्रतीकात्मक अनुवाद के अंतर्गत आता है।

2) सीमित स्वरूप – सीमित स्वरूप में अनुवाद को एक ‘ भाषिक क्रिया ‘ के सिद्धांत के रूप मे देखा गया है। क्योंकि भाषिक क्रिया के अंतर्गत अनुवाद एक भाषा से दूसरी भाषा में अंतरण होती है। इसीलिए इसे “भाषांतरण” कहा जाता है। अनुवाद दो भिन्न भाषाओं के बीच जिसमे एक भाषा से दूसरी भाषा में अर्थ या कथ्य का अंतरण किया जाता है। इसीलिए सीमित संदर्भों में अनुवाद को ” भाषांतरण” को अंतरण के रूप में अपनाया गया है। सीमित संदर्भ में दो भाषाओं के बीच घटित अनुवाद को व्यापार के लिए किया जाता है। इसीलिए इसमें दो भाषाओं के बीच के अनुवाद को ही वास्तविक अनुवाद कहा जाता है।

क)पाठधर्मी आयाम – पाठधर्मी पाठ के अंतर्गत अनुवाद करते समय स्रोत भाषा के पाठ को केंद्र में रखा जाता है। यह माना जाता है कि मूल पाठ स्वयं में एक स्वायत्त रचना होती है। पाठधर्मी अनुवाद भाषा के सापेक्षतावादी सिद्धांत पर आधारित है। संसार के हर भाषा – भाषी के लोग भौतिक सत्य को समान रूप से ग्रहण करेंगे यह आवश्यक नहीं है। इसी कारण से एक ही भौतिक सत्य अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग ढंग से व्यक्त किया जाता है।

ख) प्रभावधर्मी आयाम – प्रभावधर्मी आयाम अन्य सृजनात्मक साहित्यिक विधाओं में भी विशेष रूप से कविता के अनुवाद में तो प्रभाव धर्मी अनुवाद का ही आश्रय लेना होता है। यह माना गया है कि पाठ तो पाठक तथा लेखक के बीच संबंध स्थापित करने वाला एक ऐसा उपकरण है, जिसके आधार पर यह पता लगाया जाता है कि पाठक के मन पर क्या प्रभाव पड़ा है।

अनुवाद का क्षेत्र –

अभी के समय में अनुवाद का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। अनुवाद अभी सबसे बड़ी जरूरत है क्योंकि ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां अनुवाद की उपयोगिता न हो। अनुवाद मौखिक, लिखित, प्रतीकात्मक कुछ भी हो सकता है, चाहे शिक्षा के क्षेत्र में हो, न्यायालय में, मीडिया में, सरकारी कार्यालय में हो या फिर साहित्य के क्षेत्र में हो अनुवाद का उपयोगहर क्षेत्र में है।

शिक्षा के क्षेत्र में अनुवाद – आज के समय में शिक्षा के क्षेत्र में ज्यादातर अंग्रेजी ही देखने को मिलता है। प्राथमिक शिक्षा में जहां मातृभाषाओं या क्षेत्रीय भाषाओं का महत्व है, परंतु वहीं उच्च शिक्षा में यह भी अंग्रेजी तक सीमित रह जाती है। इसीलिए अंग्रेजी और हिंदी जैसे भाषाओं को दूसरे केंद्रीय भाषाओं से जोड़ने में अनुवाद की अहम भूमिका होती है।

न्यायालय के क्षेत्र में अनुवाद – हमारे देश में आज भी न्यायालय की भाषा अंग्रेजी ही है भले ही निचली अदालत में कागजात प्रादेशिक भाषा के होते हैं पर जो भी कार्य होते हैं वह अंग्रेजी भाषा में ही होते हैं। जब कोई मामला अगर सर्वोच्च न्यायालय में जाता है, तब अनुवादकों द्वारा सारे दस्तावेजों का अंग्रेजी में अनुवाद करना होता है।

मीडिया के क्षेत्र में अनुवाद – वर्तमान में हमें जितने भी सूचनाएं या समाचार मिलती हैं, वह हमें इस मीडिया के द्वारा ही मिलती है। देश- विदेश हर जगहों की सूचनाएं हमें इसी मीडिया के द्वारा अनुवाद कर हम तक अपनी प्रादेशिक भाषाओं में पहुंचती है। वैसे आज हर क्षेत्रीय भाषा में मीडिया उपलब्ध है।

सरकारी कार्यालयों में अनुवाद – सरकारी कार्यालयों में ज्यादातर हिंदी से अंग्रेजी या अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया जाता है। इसीलिए सरकारी कार्यालयों में अधिकारियों की भर्ती की जाती है, ताकि वहां के जितने भी दस्तावेजों को क्षेत्रीय भाषाओं से हिंदी में अनुवाद किया जाता है।

साहित्य के क्षेत्र मेंअनुवाद – वैसे ज्यादातर हरेक क्षेत्र में अनुवाद की महत्ता बहुत ही अधिक है पर यह साहित्य में भी अनुवाद की भूमिका पहले से ही चली आ रही है। जैसे – मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा रचित बहुत ही प्रसिद्ध उपन्यास “गोदान” इसका भी अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। “द गिफ्ट ऑफ़ ए काऊ “के नाम से। इसी प्रकार ऐसे और भी साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद किया गया है।

इसी तरह बैंकों में, कार्टून में, फिल्म में, कहानियों में अनुवाद की आवश्यकता पड़ती है। हमारा देश बहुभाषी देश है, जहां अनुवाद एक प्रकार का सूत्र है जिसके जरिए हम देश के कोने – कोने से जुड़े रहते हैं। अनुवाद के जरिए ही आज हम अलग – अलग समाज के संकृति, एवं सभ्यताओं को जान पा रहे हैं।

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